महर्षि दयानंद ने स्वाधीनता आंदोलन को राष्ट्रीय स्वरूप प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की
शिवालिक पत्रिका, चंडीगढ़ हरियाणा के राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय ने राजभवन में महर्षि दयानंद सरस्वती जी के द्वितीय जन्म शताब्दी वर्ष के शुभांरभ अवसर पर उन्हें पुष्पांजलि अर्पित करते हुए कहा कि महिर्ष दयानंद जी ऐसे युग पुरूष थे, जिन्होंने वैदिक संस्कृति के पुनरूत्थान के लिए जन जागरण अभियान शुरू किया। राज भवन में आयोजित इस पुष्पांजलि सभा के दौरान राज्यपाल ने कहा कि महर्षि दयानंद ने इस वैदिक सांस्कृतिक पुर्नात्थान को स्वराज्य और आजादी की भावना से जोड़ दिया। 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के पश्चात अंग्र्रेजों ने स्वाधीनता के आंदोलन को दबाने की पूरी कोशिश की परंतु महर्षि दयानंद ने इस स्वाधीनता आंदोलन को राष्ट्रीय स्वरूप प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। इसके साथ ही उन्होंने सामाजिक कुरीति उन्मूलन, स्त्री शिक्षा को प्रोत्साहन, सामाजिक समरसता के लिए काम कर समाज सुधार की नई क्रान्ति का सूत्रपात किया। उन्होनें कहा कि महर्षि दयानंद ने भारतीयों में स्वदेशी, स्वराज्य तथा आजादी की भावना को सुदृढ़ किया। महर्षि दयानंद ने भारतीय समाज में फैली कुरीतियों, जातिवाद, छुआछुत, लैंगिक विषमता का जमकर विरोध किया। उन्होंने जन मानस को बताया कि यह कुरीतियां भारतीय वैदिक सांस्कृतिक के विकार के तौर पर उभरी और इन कुरीतियों को जड़ से मिटा देना चाहिए। उनके विचारों का भारतीय जन मानस पर गहरा असर हुआ। महर्षि दयानंद की शिक्षाएं आज भी प्रासंगिक हैं। उन्हीं की शिक्षाओं पर चलते हुए आर्य समाज संस्थाएं देश एवं समाज सेवा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दे रही है।