पंजाब: दूसरी पार्टियों से लाए गए उम्मीदवार भी भाजपा को नहीं दिला पाए जीत
1 min readचार में से तीन सीटों पर भाजपा उम्मीदवारों की जमानत जब्त
चंडीगढ़: अकाली-भाजपा गठजोड़ के टूट जाने के बाद भारतीय जनता पार्टी पंजाब में अपने दम पर चुनावों में जीत हासिल करने के लिए नए-नए प्रयोग कर रही है। लेकिन पंजाब की राजनीति में भाजपा को वह स्थान नहीं मिल पा रहा है जिसकी वह हकदार है। इन विधानसभा उपचुनावों में भी भारतीय जनता पार्टी ने दूसरी पार्टियों से बड़े-बड़े दिग्गजों को लाकर ग्रामीण हलकों में उतारने का जो दांव खेला, वह पूरी तरह फेल साबित हुआ है। चार में से तीन सीटों पर भाजपा उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई है। इस हार से पार्टी में एक बार फिर से यह बहस छिड़ गई है कि क्या पार्टी को अपने काडर पर भरोसा करना चाहिए या दूसरी पार्टी की बैसाखियों पर चलना चाहिए।
लोकसभा चुनावों में पार्टी को 18 प्रतिशत वोट मिले थे और इस बार अकाली दल के चुनाव न लड़ने से उम्मीद थी कि इस वोट बैंक के सहारे भाजपा को कुछ न कुछ सफलता जरूर मिलेगी। लोकसभा के मुकाबले इस बार भाजपा के उम्मीदवारों को चुनाव प्रचार करने में भी कोई दिक्कत नहीं आई जबकि लोकसभा चुनाव के दौरान उन्हें किसानों के विरोध का सामना करना पड़ा था। लेकिन इस बार उन्हें लोकसभा में मिले वोट से भी कम वोट मिले।
लोकसभा में पार्टी ने अपने काडर के नेताओं को उतारा था लेकिन इन चुनाव में तो सीधे दूसरी पार्टियों से आए उम्मीदवार ही उतारे गए। किसी एक भी सीट पर पार्टी ने अपने काडर पर विश्वास नहीं जताया।
गिद्दड़बाहा सीट से मनप्रीत बादल को मात्र 12,227 वोट मिले जबकि लोकसभा चुनाव में किसानों के सबसे ज्यादा विरोध का सामना कर रहे पार्टी के उम्मीदवार हंसराज हंस को 14,850 वोट मिले थे।
बरनाला सीट पर पार्टी की जमानत तो बच गई लेकिन उनके उम्मीदवार केवल ढिल्लों को केवल 17,958 वोट मिले थे जबकि लोकसभा चुनाव के दौरान उनके उम्मीदवार अरविंद खन्ना को 19,218 वोट मिले थे।
चब्बेवाल सीट पर पार्टी ने पूर्व अकाली मंत्री सोहन सिंह ठंडल को पार्टी में शामिल करके मैदान में उतार दिया। सोहन सिंह ठंडल को मात्र 8,692 वोट मिले। इससे पहले ठंडल ने शिअद की टिकट पर लोकसभा चुनाव भी लड़ा था तब उन्हें यहां से 11,935 वोट मिले थे।
डेरा बाबा नानक सीट पर भी पार्टी ने पूर्व स्पीकर निर्मल सिंह काहलों के बेटे रवि करण काहलों को उतारकर दांव खेला लेकिन यहां भी पार्टी उम्मीदवार की जमानत जब्त हो गई।
चार सीटों पर उपचुनाव में से केवल ढिल्लों ही एक ऐसे प्रत्याशी हैं जिन्हें लोकसभा के भाजपा उम्मीदवार से ज्यादा वोट मिले। काहलों को 6,505 वोट मिले जबकि पांच महीने पहले हुए लोकसभा चुनाव में पार्टी प्रत्याशी दिनेश बब्बू को 5981 वोट मिले थे। पार्टी के प्रदर्शन से एक बात तो साबित होती है कि भाजपा द्वारा पंजाब की राजनीति में किए जा रहे प्रयोग बार-बार फेल होते जा रहे हैं।