देश में प्रॉपर्टी की तरह बेचे जा रहे बच्चे, 10 लाख रुपए एक बच्चे की कीमत
दिल्ली पुलिस ने बच्चा बेचने वाले गिरोह के कई लोगों को गिरफ्तार किया
नई दिल्ली: देशभर में प्रॉपर्टी की तरह बच्चें बेचने का धंधा तेजी से बढ़ रहा है। अमीर घराने के लोग लाखों रुपए खर्च करके बच्चा खरीद रहे है। आपको जानकार हैरानी होगी कि एक बच्चे को करीब 7 से 10 लाख रुपए में बेचा जा रहा है। दिल्ली पुलिस ने बच्चा बेचने वाले गिरोह के कई लोगों को गिरफ्तार किया है।
दिल्ली पुलिस की ओर से इस महीने दायर दो हजार पन्नों की चार्जशीट में 11 आरोपियों के नाम हैं जिनमें छह महिलाएं हैं। पुलिस ने इसमें बेहद चौंकाने वाली कहानी का खाका खींचा है जिसमें बताया गया है कि किस तरह राजस्थान और गुजरात के आदिवासी इलाकों में गरीब परिवारों को निशाना बनाया जाता था और नवजात बेटों को 1.5 लाख में खरीदकर दिल्ली के अमीर परिवारों में 5 से 10 लाख रुपये में बेचा जाता था। इस बात का पता तब चला जब राजस्थान के एक आदिवासी गांव से जब उस बच्चे को दिल्ली लाया गया था तब वह महज 4 दिन का था। गरीबी से जूझ रहे उसके माता-पिता पहले से कई संतानों को पालने का संघर्ष कर रहे थे। जब तक पुलिस ने उसे बरामद किया वह एक व्यस्त बाजार में खड़ी कार में था और पहले ही बेचा जा चुका था। यह बच्चा दिल्ली पुलिस की ओर उस जांच के तहत बजाए गए तीन बच्चो में से एक है, जिसने बच्चों की तस्करी के एक बड़े खेल का खुलासा किया। इस तस्करी को चलाने वाली अधिकतर वो महिलाएं हैं जो कभी एग डोनर रही हैं। अब इन पर साजिश और करप्शन का केस चल रहा है। तीनों बच्चे चाइल्ड वेलफेयर कमिटी के पास हैं और पुलिस चौथे बच्चे की तलाश में है।
डीसीपी (द्वारका) अंकित सिंह ने कहा, ‘वे 5-10 लाख रुपये के बीच सौदे की बात कर रहे थे।’ यह बच्चा राजस्थान में पैदा हुआ था और जन्म के तुरंत बाद उसे दिल्ली लाया गया। यास्मीन ने ‘कैरियर’ का काम किया जिसे बच्चे के लिए 1.5 लाख रुपये दिए गए, जबकि अंजलि और जितेंद्र को दिल्ली के परिवार के साथ डील फाइनल करनी थी। जन्म के एक दिन बाद ही एक राज्य से दूसरे राज्य ले जाए गए बच्चे को जॉइंडिस हो गया और अन्य जटिलताओं की वजह से उसे आईसीयू में भर्ती कराया गया। अधिकारी ने कहा, ‘जब तक बच्चा अस्पताल में रहा उसके साथ एक महिला कांस्टेबल रही। बाद में बच्चा पूरी तरह स्वस्थ हो गया।’ बाद में पुलिस ने बच्चे के असली पिता का पता लगा लिया जोकि बेरोजगार था और उसके चार बच्चे हैं। पुलिस ने उसे उदयपुर के पास पकड़ा और उसने बच्चे को बेचने का जुर्म कबूल किया। जांचकर्ताओं को पता लगा कि गैंग ने एक साल में चार बच्चों को बेचा है और सभी बेटे थे। एक अन्य अधिकारी ने बताया कि वह आदिवासी इलाकों में गर्भवती महिलाओं की तलाश करते थे और बच्चे के जन्म से ठीक पहले या बाद में डील फाइनल की जाती थी। उन्होंने कहा, ’30 दिन से कम के नवजात बेटों की मांग बहुत अधिक है।’
30 अप्रैल को पूजा सिंह को कड़कड़डूमा स्थित किराये के एक फ्लैट में पकड़ा गया। इन गिरफ्तारियों का 21 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने भी स्वत: संज्ञान लिया और इसे ‘बड़ा ऑपरेशन’ कहते हुए अदालत ने दिल्ली पुलिस को तलाश तेज करने और बाकी दोषियों को गिरफ्तार करने को कहा। अगले कुछ सप्ताह में सब इंस्पेक्टर राकेश और एएसआई करतार सिंह की अगुआई में टीमों ने डिजिटल फॉरेंसिक से लेकर फील्ड वर्क तक कई तरीके अपनाते हुए अन्य आरोपियों को दबोच लिया। ज्योति और सरोज को पहले ही दिल्ली और उत्तर प्रदेश में बच्चा तस्करी में पकड़ा गया था। इन्हें दिल्ली में विकासपुरी से गिरफ्तार किया गया। गरीब परिवारों से संपर्क करने वाले रंजीत को राजस्थान से दबोचा गया। ऐसे ही एक कॉल ने पुलिस को पश्चिमी दिल्ली के मादीपुर में एक कारोबारी तक पहुंचाया। पुलिस का कहना है कि कारोबारी ने इस साल करीब 8 लाख रुपये में ‘बेटा’ खरीदा था। एक अन्य अधिकारी ने कहा, ‘उसकी तीन बेटियां थीं। जूता कारोबार संभालने के लिए उसे बेटा चाहिए था।’
उस समय दो महीने के रहे बच्चे को बरामद कर लिया गया और कारोबारी को गिरफ्तार किया गया। एक दूसरे बच्चे को गुलाबी बाग से बरामद किया गया जहां उसे एक 40 साल के ट्रांसपोर्टर को बेचा गया था। सभी आरोपियों को प्रति बच्चे 35 हजार की कमाई होती थी। पुलिस ने कहा कि परिवारों से झूठ कहा गया था कि कानूनी रूप से गोद लेने की प्रक्रिया पूरी की गई है। विमला उन्हें फर्जी शपथपत्र भी देती थी।
पूजा के बाद इस गिरोह की दूसरी बड़ी सदस्य 59 साल की विमला है। 36 साल की अंजली भी इनके साथ थी जिस पर बच्चा तस्करी को लेकर सीबीआई का केस चल चुका है। ग्रामीण इलाकों से बच्चे लाने वाले बिचौलिए जितेंद्र और रंजीत है। सभी न्यायिक हिरासत में जेल में बंद हैं। दिल्ली पुलिस की जांच की शुरुआत मार्च में हुई जब उत्तर नगर में इंस्पेक्टर विश्वेद्र चौधरी को सूचना मिली। 20 दिन के सर्विलांस और फोन रिकॉर्ड्स की जांच के बाद उन्हें पहली सफलता मिली। 8 अप्रैल को यास्मीन (30), अंजलि और जितेंद्र को पकड़ा गया जब वे बच्चे को बेचने के लिए कार से निकले थे।
