पंजाब में गहराते आर्थिक संकट से निपटने के लिए निशुल्क सेवाओं पर हो पुन: विचार
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चण्डीगढ़: पंजाब सरकार बढ़ते आर्थिक बोझ के कारण महिलाओं को मिल रही निशुल्क बस सेवा का विकल्प ढूंढने को मजबूर है। पंजाब में कांग्रेस सरकार के दौरान जब कैप्टन अमरिंदर सिंह ने योजना शुरू की थी, तब इस पर लगभग 600 करोड़ रुपए खर्च आ रहा था। यह अब भगवंत मान सरकार के दौरान लगभग 750 करोड़ रुपए तक पहुंच चुका है।
महिलाओं को निशुल्क बस सेवा के लिए सरकार को हर महीने पंजाब रोडवेज और पंजाब रोडवेज ट्रांसपोर्ट कार्पोरेशन (पीआरटीसी) को 25-25 करोड़ रुपए देने पड़ते हैं। सरकार पर पीआरटीसी की बकाया राशि 300 करोड़ रुपए हो चुकी है। सब्सिडी सीमित करने के विकल्प पर विचार किया जा रहा है। अब स्मार्ट कार्ड योजना पर सहमति बनती दिख रही है। यानी अब महिलाएं हर माह निश्चित दिन ही निशुल्क यात्रा कर सकेंगी। अन्य दिन यात्रा करने पर महिला को पैसे देने होंगे। सरकारी नौकरी करने वाली महिलाएं भी योजना से बाहर की जा सकती हैं। सरकार जरूरतमंद महिलाओं को ही फ्री यात्रा सुविधा देना चाहती है।
पिछले दिनों जब मुख्यमंत्री मान ने वित्त अधिकारियों के साथ बैठक की थी तो उसमें भी बढ़ती सब्सिडी के बोझ और केंद्रीय योजनाओं की राशि न मिलने पर लंबी चर्चा की गई थी। बताया गया था कि कर्ज लेकर ज्यादा काम नहीं चलाया जा सकता। कोविड-19 के समय केन्द्र ने तीन वर्ष के लिए राज्यों के कर्ज लेने की सीमा को तीन से बढ़ाकर 3.50 प्रतिशत कर दिया था। कुछ शर्तें भी लगा दी थीं। कैप्टन सरकार ने कर्ज नहीं लिया, लेकिन आप सरकार ने पिछला खर्च न किया हुआ कर्ज भी ले लिया।
पंजाब पर इस साल मार्च तक 3.27 लाख करोड़ का कर्ज हो चुका है। सरकार को 22 हजार करोड़ केवल ब्याज देना पड़ रहा है। सरकार 21 हजार करोड़ रुपए बिजली सब्सिडी के साथ-साथ अन्य सेक्टरों में दी जा रही सब्सिडी को भी सीमित करने पर विचार कर रही है। पिछले दिनों मुख्यमंत्री भगवंत मान और वित्त मंत्री हरपाल सिंह चीमा ने भारत सरकार के पूर्व आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रामण्यम के साथ भी लंबी बातचीत की थी और उनसे राज्य को आर्थिक संकट से निकालने के बारे में सुझाव भी मांगे थे।
पंजाब के उज्जवल भविष्य और आर्थिक मजबूती की मांग है कि केवल गरीब व पिछड़ों को शिक्षा, स्वास्थ्य संबंधी निशुल्क सेवाएं मिले। इसी तरह 5 एकड़ से कम जमीन वाले किसान से बिजली-पानी का बिल न लिया जाए। शेष सभी किसानों सहित सभी लोगों से बिजली-पानी का बिल लिया जाए। नैतिक दृष्टि से देखा जाए तो निशुल्क बुनियादी सेवाओं का हकदार अगर कोई है तो वह वर्ग है जो दो वक्त की रोटी के लिए संघर्षरत है। पिछड़ों और दलितों तथा अन्य वर्गों जिनके पास मकान, कोई सरकारी नौकरी और जमीन जायदाद है उनको निशुल्क सेवाएं देने का अर्थ जहां करदाता पर बोझ है, वहीं पंजाब के भविष्य के साथ खिलवाड़ भी है।
पंजाब सरकार को राज्य की आर्थिक मजबूती और उज्जवल भविष्य को सम्मुख रखते हुए दी जा रही निशुल्क सेवाएं चाहे वह बस सेवा है या बिजली-पानी, उन पर पुन: विचार करने की आवश्यकता है।