February 22, 2025

बाबा बालक नाथ धाम दियोटसिद्ध- करोडों भक्तों की आस्था का केंद्र

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हिमाचल प्रदेश को देवी देवताओं की भूमि के रूप में जाना जाता है। यहां अनेकों देवी देवताओं के मंदिर व सिद्ध तीर्थ प्रतिष्ठित है जिनमें बाबा बालक नाथ सिद्ध धाम दियोटसिद्ध उत्तर भारत का प्रसिद्ध सिद्ध पीठ है। हिमाचल प्रदेश के जिला हमीरपुर के चकमोह गांव स्थित दियोटसिद्ध में धौलागिरी पर्वत के शिखर पर सिद्ध बाबा बालक नाथ जी की पावन गुफा स्थापित है जो कि शाहतलाई से लगभग 5 किलोमीटर दूरी पर है। यहां देश व विदेश से प्रति वर्ष लाखों श्रद्धालु बाबा जी का आशीर्वाद पाने के लिए पहुंचते हैं। बाबा बालक नाथ सिद्ध धाम दियोटसिद्ध उत्तर भारत के विख्यात सिद्ध स्थलों में से एक है जो प्राचीन काल से ही सिद्ध बाबा बालक नाथ के पुण्य प्रतापों के कारण जगत प्रसिद्ध है।

पुराणों एवं अन्य धार्मिक साहित्य में सिद्ध परंपरा के बारे में विस्तार से बताया गया है। पतंजलि योग सूत्र के अनुसार सिद्ध के दर्शन सामान्यता नहीं होते हैं परंतु मनुष्य अपने शरीर के ऊपर भाग में मन,संयम से नियंत्रण करते हैं तब सिद्ध के दर्शन सुलभ होते हैं। बाबा बालकनाथ जी को शिव का साक्षात अवतार व सर्वोच्च सिद्ध माना गया है। सिद्ध के विलक्षण चरित्र संबंधित महाभारत के अश्वमेघ पर्व में भी उल्लेख मिलता है। यह माना जाता है कि सिद्ध पुरुष हजारों वर्ष जीवित रहते हैं और सूक्ष्म शरीर में लोक विचरण करते रहते हैं। बाबा बालक नाथ जी का जन्म पौराणिक मुनि देव व्यास के पुत्र सुकदेव के जन्म के समय बताया जाता है। सुकदेव मुनि का जब जन्म हुआ, उसी समय 84 सिद्ध विभिन्न स्थानों पर जन्म लिए। इनमें सिद्ध बाबा बालक नाथ भी एक थे। बाबा बालक नाथ गुरु दत्तात्रेय के शिष्य थे। पौराणिक इतिहास के अनुसार नवनाथ और 84 सिद्ध का समय आठवीं से 12वीं शताब्दी के बीच माना जाता है।

बाल योगी बाबा बालक नाथ काठियावाड़ गुजरात में पिता वैष्णो वैश और माता लक्ष्मी के घर जन्मे व उन्हें देव नाम से जाना गया। उनके पिता ने उनका विवाह करना निश्चित किया लेकिन बाबा जी उनके प्रस्ताव को अस्वीकार कर घर परिवार छोड़कर परम सिद्धि की राह पर निकल पड़े। गिरनार पर्वत के सुप्रसिद्ध ऐतिहासिक स्थल जूनागढ़ में गुरु दत्तात्रेय से उन्हें दीक्षा प्राप्त हुई। यहीं पर उन्होंने सिद्ध की बुनियादी शिक्षा ग्रहण की और सिद्ध बने। इस दौरान सूर्य ग्रहण के समय कुरुक्षेत्र पधारे बाबा बालक नाथ घूमते घूमते शाहतलाई पहुंचे व वहां ध्यान योग करने लगे। यहां पर उनकी भेंट माई रत्नो से हुई। शाहतलाई में उन्होंने बट वृक्ष के नीचे अपनी धूनी रमाई। 12 वर्ष का समय पूर्ण होने के बाद पोनाहारी बाबा बालक नाथ ने दियोटसिद्ध में अपना धाम प्रतिष्ठित किया।

बाबा बालक नाथ जी के बारे में प्रचलित कथा

एक महिला जिसका नाम रत्नो था, ने बाबा जी को अपने गायों की रखवाली के लिए रखा था। जिसके बदले में माई रत्नो बाबा जी को रोटी और लस्सी खाने को देती थी। ऐसी मान्यता है कि बाबा जी अपनी तपस्या में इतने लीन रहते थे कि रत्नो द्वारा दी गई रोटी और लस्सी खाना याद ही नहीं रहता था। एक बार जब रत्नो बाबा जी से इस बात के लिए नाराज हो गई कि वह उनकी गायों का ठीक से ख्याल नहीं रखते और बाबा जी को अपनी रोटी और लस्सी का ताना देने लगी। ताना देते हुए कहने लगी कि वह उनके खाने पीने का खूब ध्यान रखती है लेकिन वे अपना काम ठीक से नहीं करते हैं। रत्नो का इतना कहने पर बाबा जी ने पेड़ के तने से रोटी और जमीन से लस्सी को उत्पन्न कर दिया और कहा कि हे मां, यह है तेरी रोटी और लस्सी। बाबा जी का यहां चमत्कार देखकर लोग उनके श्रद्धालु बनने लगे और आज देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु उनके दर्शनों के लिए दियोटसिद्ध पहुंचते हैं।

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बाबा जी ने सारी उम्र ब्रह्मचर्य का पालन किया और इसी बात को ध्यान में रखते हुए उनकी महिला भक्त गर्भ गुफा में प्रवेश नहीं करती हैं जो की प्राकृतिक गुफा में स्थित है, जहां बाबा की तपस्या करते हुए अंतर्ध्यान होते थे। बाबा बालक नाथ को सिद्ध माना जाता है इसी वजह से उन्हें सिद्ध बाबा बालक नाथ के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा उन्हें शिव का अवतार भी माना जाता है।

सिद्ध बाबा बालक नाथ का मंत्र ‘ओम नमः सिद्धाय’ है जबकि उनके प्रतीक में झोली, चिमटा, बैरागन, पउए है। उनकी सवारी मोर मानी जाती है। उनका महीना चैत्र है व प्रसाद के रूप में रोट है जो की आटा और चीनी या गुड़ को घी में मिलाकर बनाया जाता है। कुछ भक्त उन्हें भेंट व श्रद्धा स्वरूप बकरा भी चढ़ाते हैं लेकिन उसकी बलि नहीं दी जाती है व उसे भेंट स्वरूप माना व पाला जाता है।

कैसे पहुंचें दियोटसिद्ध

वायु मार्ग दियोटसिद्ध पहुंचने के लिए निकटतम हवाई अड्डा चंडीगढ़ है जो यहां से लगभग 170 किलोमीटर दूरी पर है जबकि दूसरा हवाई अड्डा हिमाचल प्रदेश के जिला कांगड़ा स्थित गग्गल है जो यहां से लगभग 128 किलोमीटर की दूरी पर है।

रेल मार्ग इस स्थान के लिए कोई सीधी रेल सेवा नहीं है इसलिए रेल मार्ग द्वारा यहां पहुंचने के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन ऊना है जो कि यहां से लगभग 55 किलोमीटर की दूरी पर है।

सड़क मार्ग दियोटसिद्ध हिमाचल प्रदेश व अन्य पड़ोसी राज्यों से सीधी बस सेवा से जुड़ा हुआ है। बेहतर सड़क मार्ग होने के कारण यहां पहुंचने के लिए हर स्थान से टैक्सी सेवा भी उपलब्ध है।