— जब भगवान विष्णु की कृपा से पीपल का सूखा पेड़ हो गया था हरा
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पीपलू मेले को लेकर यह है प्रचलित किंवदंतियां
अजय कुमार, बंगाणा,
बंगाणा उपमंडल से लगभग छ: किमी की दूरी पर सोलहसिंगी धार पर स्थित पिपलू नामक गांव में नरसिंह देव का मंदिर है। जनश्रुतियों के अनुसार एक बार हटली गांव का एक किसान उतरू अपने खेतों में काम कर रहा था। अचानक उसकी दराती मल्ही के एक पौधे में फंस गई। मल्ही के पौैधे को साफ करने के पश्चात वह घर चला गया। रात को सपने में उसे आवाज सुनाई दी कि मुझे खेत में नग्न छोडक़र तुम स्वयं बड़े आनंद से यहां सो रहे हो। मुझे अब वहां धूप और ठंड लगेगी साथ ही मुझ पर बारिश भी गिरेगी। दूसरे दिन उतरू फिर उसी खेत में जा पहुँचा। उसने वहां से शिला उठाकर पशुशाला में रख दी और स्वयं जाकर चारपाई पर सोने लगा। अभी वह मुश्किल से चारपाई पर सोया ही था कि वह चारपाई से नीचे गिर पड़ा। जब भी वह चारपाई पर सोने का प्रयास करता तो नीचे गिर जाता।
इस दौरान पशुशाला में उसके पशु जोर-जोर से आवाजें निकालने लगे। तब उतरू को सारा मामला समझ में आ गया। उसने भगवान विष्णु को याद किया और मन ही मन उनने दर्शन देने की प्रार्थन करने लगा। भगवान विष्णु ने उसे दर्शन देकर कहा कि तुम मेरी पिंडी को बाजे गाजे के साथ ले किसी सूखे पीपल के पेड़ के नीचे रख दो। तदोपरांत उतरू पीपल का सूखा वृक्ष ढ़ूंढते-ढूढ़ते झगरोट गाँव जा पहुंचा,जहां उसे पीपल का एक सूखा पेड़ दिखाई दिया। उतरू गांव वालों को साथ लेकर बाजे गाजे के साथ शिला लेकर चल पड़ा औैर पीपल के सूखे पेड़ के नीचे स्थापित कर दिया। आठवें दिन ही सूखे पीपल से कोंपलें फूटने लगीं और कुछ ही दिनों में यह पेड़ हरा-भरा हो गया।
उतरू ने प्रतिदिन यहां आकर पूजा-अर्चना आरंभ कर दी। धीरे-धीरे इस स्थान का नाम पिपलू पड़ गया और लोगों की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होने लग पड़ीं। प्रतिवर्ष ज्येष्ठ शुक्ल की एकादशी के दिन यहां भारी मेला लगता है, जिसमें श्रद्धालुओं द्वारा लोगों को ठंडा जल और शर्बत पीने के लिए दिया जाता है। एक अन्य लोकश्रुति के अनुसार यह शालीग्राम भगवान विष्णु के नरसिंह के रूप में अवतरित होने का श्रीविग्रह है। यहां लोग इस शालीग्राम की पूजा भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार के रूप में करते हैं।
एक अन्य किंवदन्ती के अनुसार लगभग 150 साल पहले पिपलू में एक पुराने पीपल का बड़ा पेड़ सूख गया। लोग तब इन बातों के प्रति अनायास ही चिंतित हो उठते थे। एक पुजारी जो उस पीपल के वृक्ष की कभी पूजा किया करता था कहीं से एक शालीग्राम ले आया और उसे पीपल की जड़ के पास स्थापित कर दिया। अगली सुबह एक चमत्कार हुआ औैर सूखे पेड़ से हरी कोंपलें फूट पड़ीं। सूखे पीपल का पेड़ फिर से हरा-भरा हो गया।
पुजारी को देवता ने स्वप्न के माध्यम से हर निर्जला एकादशी को इस स्थान पर विशाल मेला आयोजित करवाने की आज्ञा दी। तब से शालीग्राम की पूजा भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार के रूप में होने लगी। इस स्थान पर दूर-दराज से आकर श्रद्धालु माथा टेकते हैं और मन्नतें मांगते हैं। निर्जला एकादशी को पिपलू में भारी मेला लगता है। लोग जगह-जगह रास्तों के किनारे मीठे पानी की छबीलें लगाकर श्रद्धालुओं को पानी पिलाते हैं। नाचने गाने वालों की अलग-अलग टोलियां वाद्ययंत्रों के साथ मेले के दौरान एक दूसरे को ललकारती हुई निकलती हैं।