December 23, 2025

ब्रिटेन में आम चुनाव के लिए मतदान शुरू, ऋषि सुनक को भारतीय मूल के लोगों का ही समर्थन नहीं

लंदन – ब्रिटेन में आम चुनाव के लिए मतदान शुरू हो गया और करीब 40 हजार मतदान केन्द्रों पर लाखों मतदाताओं ने वोट डाले। यहां की स्थानीय मीडिया के अनुसार, मतदान स्थानीय समयानुसार सुबह करीब छह बजे शुरू हुआ। छह सौ 50 निर्वाचन क्षेत्रों के मतदाता संसद के निचले सदन हाउस ऑफ कॉमन्स के सदस्यों का चुनाव करेंगे। किसी पार्टी को बहुमत हासिल करने के लिए करीब 326 सीटें जीतनी होगीं और उसे किंग चार्ल्स तृतीय द्वारा सरकार बनाने के लिए कहा जायेगा।

एक सर्वे में जानकारी सामने आई है कि भारतीय मूल के ऋषि सुनक को ब्रिटेन में भारतीय मूल के लोगों का ही समर्थन नहीं मिल रहा है। सर्वे के मुताबिक, ब्रिटेन के 65% भारतीय वोटर सुनक की पार्टी के खिलाफ हैं। ब्रिटेन में लगभग 25 लाख भारतीय वोट देंगे। सर्वे के मुताबिक, ऋषि सुनक की लोकप्रियता घटने के पीछे की वजह बढ़ती महंगाई के बीच सुनक फैमिली की लाइफ स्टाइल में भारी खर्च बताया जा रहा है। ब्रिटेन जिस आर्थिक खस्ताहाली के दौर से गुजर रहा है, उससे पार पाने में बतौर पीएम सुनक नाकाम रहे हैं। इसलिए भारतीय समुदाय के लोग भी टोरी-विरोधी लहर में शामिल हो गए हैं।

कंजरवेटिव पार्टी को 250 सीटों का हो सकता है नुकसान
सर्वे के मुताबिक, ऋषि सुनक की कंजर्वेटिव पार्टी को 250 सीटों का नुकसान हो सकता है। पार्टी महज़ 100 सीटों पर सिमट सकती है। जबकि लेबर पार्टी को 45% वोट मिलने का अनुमान लगाया गया है। वो 450 से ज्यादा सीट जीत सकती है। बता दें कि यूके संसद में बहुमत के लिए 286 सीट चाहिए।

चुनाव पूर्व जनमत सर्वेक्षणों ने मुख्य विपक्षी लेबर पार्टी को कंजर्वेटिव पार्टी पर 20 अंकों की बढ़त दी, जो 14 वर्षों से सत्ता में है। पर्यवेक्षकों का कहना है कि जीवन यापन की लागत, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और आव्रजन उन मुद्दों में से हैं जो मतदाताओं के लिए सबसे अधिक मायने रखते हैं। प्रधानमंत्री ऋषि सुनक की सरकार में ब्रिटेन की मुद्रास्फीति दर 2022 में चार दशक के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई, जिससे जनता को परेशानी का सामना करना पड़ा है। अप्रैल में एक आधिकारिक सर्वेक्षण के अनुसार, हाल के महीनों में मुद्रास्फीति में गिरावट के बावजूद, किराने का सामान, ऊर्जा और किराए जैसी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिये आम लोगों की प्राथमिक चिंता का विषय बनी हुयी हैं।

लिवरपूल विश्वविद्यालय में राजनीति के प्रोफेसर स्टुअर्ट विल्क्स-हीग ने मीडिया को बताया कि आम राय यह है कि सरकार में अपने 14 वर्षों के दौरान इन मुद्दों से निपटने में कंजरवेटिव का रिकॉर्ड ‘भयानक’ रहा है। लेबर पार्टी को बदलाव के विकल्प के रूप में देखा जाता है, भले ही लेबर पार्टी के नेता कीर स्टारमर के लिए ‘कोई खास उत्साह’ न हो।

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