March 14, 2025

हिमाचल की सुक्खू सरकार के लिए नहीं है अभी सुख का संदेश

हिमाचल प्रदेश में राजनीतिक गतिरोध थमने का नाम नहीं ले रहा है। राज्यसभा की एक सीट के लिए हुए चुनाव में कांग्रेस के 6 विधायकों द्वारा भाजपा उम्मीदवार के पक्ष में मतदान करने से जहां पार्टी की किरकिरी हुई वहीं मुख्यमंत्री की कार्यप्रणाली व उनके विधायकों, मंत्रियों के साथ तालमेल पर भी सवाल उठे हैं। हालांकि पार्टी आलाकमान ने मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू को हटाने के लिए विधायकों व प्रदेश कांग्रेस द्वारा बनाए गए दबाव को दरकिनार करते हुए उन्हें मुख्यमंत्री बनाए रखने का फरमान सुना कर इस विद्रोह को दबाने का प्रयास किया है। लेकिन पार्टी लाइन से हटकर चलने वाले 6 विधायकों की विधानसभा सदस्यता रद्द कर दिए जाने के बाद भी राजनीतिक उठापठक शांत नहीं हो पा रही है। स्पष्ट है कि पार्टी का एक धड़ा सुखविंदर सिंह सुक्खू को किसी भी हालत में मुख्यमंत्री के रूप में स्वीकार करने को तैयार नहीं है। हिमाचल में सत्तारूढ़ कांग्रेस के पास 40 विधायक थे पर उनमें से 6 ने भाजपा के राज्यसभा प्रत्याशी हर्ष महाजन के पक्ष में वोट दिया। भाजपा ने संख्या बल न होते हुए भी कांग्रेस से अपने पाले में आए हर्ष महाजन को जिस तरह राज्यसभा प्रत्याशी बनाया उससे यही लगा था कि कुछ खेल हो सकता है। लेकिन कांग्रेस ने इसकी परवाह नहीं की या फिर यह भी माना जा सकता है कि उसे तो इसकी भनक तक भी नहीं लगी कि तीन निर्दलीय विधायकों सहित उसके अपने 6 विधायक भाजपा के साथ जा सकते हैं। इन विधायकों के पाला बदल करने के चलते हर्ष महाजन की जीत हुई जो कांग्रेस के लिए किसी सदमें से कम नहीं है। करीब डेढ़ साल पहले हिमाचल में सुखविंदर सिंह सुक्खू के नेतृत्व में सरकार बनने के बाद से ऐसी खबरें आ रही थी कि सरकार और पार्टी में सब कुछ ठीक नहीं है। राज्यसभा चुनाव के दौरान हुए घटनाक्रम ने इस पर न केवल मोहर लगा दी बल्कि सुक्खू सरकार की नींव भी दिला दी है। विधानसभा में भाजपा के 15 विधायकों को निलंबित कर बजट पारित करने के साथ साथ बहुमत साबित कर सरकार को बचा लिया गया। बाद में विधानसभा अध्यक्ष ने 6 बागी विधायकों को अयोग्य करार दिया लेकिन इससे हिमाचल सरकार पर मंडरा रहा खतरा अभी टला नहीं है। मंत्री पद से त्यागपत्र देने वाले पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय वीरभद्र सिंह के बेटे विक्रमादित्य सिंह फिलहाल उसे स्वीकारने पर तो जोर नहीं दे रहे लेकिन उसे वापस लेने को भी तैयार नहीं है। विक्रमादित्य सिंह की मां प्रतिभा सिंह कांग्रेस सांसद और हिमाचल प्रदेश कांग्रेस की अध्यक्ष है। उन्होंने विधानसभा चुनावों के बाद मुख्यमंत्री पद के लिए दावेदारी पेश की थी लेकिन हाईकमान द्वारा उनकी दावेदारी को ठुकराकर सुखविंदर सिंह सुक्खू को प्रदेश की कमान सौंप दी गई थी। सुक्खू के मुख्यमंत्री बनने के बाद भी मंत्रियों का चयन करने में करीब एक माह लग गया था। इसके बाद माना जा रहा था कि अब सब कुछ ठीक है लेकिन कांग्रेस में असंतोष की खबरें आती रही। कांग्रेस हाईकमान ने असंतोष की परवाह न करते हुए उसकी हमेशा अनदेखी करना ही ठीक समझा। हिमाचल का घटनाक्रम यही बता रहा है कि कांग्रेस की अपने नेताओं पर पकड़ नहीं है और वह उनके असंतोष की परवाह भी नहीं करती है। हिमाचल प्रदेश की राजनीति में किसी मुख्यमंत्री के विरुद्ध इतना बड़ा विद्रोह पहले कभी नहीं हुआ है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्षा प्रतिभा सिंह मुख्यमंत्री की कार्यप्रणाली के विरुद्ध अभी भी अपना रोष प्रकट करने से परहेज नहीं कर रहीं हैं जबकि पीडब्ल्यूडी मंत्री विक्रमादित्य सिंह अभी भी दिल्ली में डेरा डाले हुए हैं। शनिवार को कैबिनेट की मीटिंग से दो मंत्रियों के नाराज होकर बाहर आ जाने से भी लोगों में गलत संदेश गया है। स्पष्ट है कि विरोधी खेमा आर पार की लड़ाई लड़ने का निश्चय कर चुका है। आने वाले चंद दिनों में यह लड़ाई अपना अंतिम रूप ले सकती है। लोकसभा चुनाव सिर पर हैं व विपक्षी भारतीय जनता पार्टी इस आग में घी डालने का काम बखूबी कर रही है। स्पष्ट है कि सुक्खू सरकार के लिए आने वाले दिन भी सुख का संदेश लेकर नहीं आयेंगे।