February 23, 2025

बहुत धुंधली है विपक्षी गठबंधन की तस्वीर

गठबंधन के सभी दल चाहते हैं कि गठबंधन की मजबूती के लिए कांग्रेस त्याग करें।

विपक्षी गठबंधन की तस्वीर जितनी चमक दमक के साथ दिखाई जा रही है हकीकत में यह उतनी सुंदर नहीं है।

विपक्षी दलों का गठबंधन आई.एन.डी.आई.ए. भले ही मुंबई बैठक के उपरांत अपनी एकजुटता का प्रदर्शन कर रहा हो मगर हकीकत में इस गठबंधन की मजबूती की राह इतनी आसान नहीं है। गठबंधन में एकता का पता तो तब चलेगा जब यह दल राज्यों में गठबंधन के दलों की चल रही सरकारों में सहयोगी दलों को साथ लेकर चलेंगे। लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं हो पा रहा है। गठबंधन के सिद्धांतों के विपरीत कल पंजाब में पूर्व मुख्यमंत्री व ऑल इंडिया कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सदस्य चरणजीत सिंह चन्नी द्वारा किसानों को दिए जा रहे मुआवजा को लेकर प्रदेश की आम आदमी पार्टी सरकार पर जमकर हमला बोला गया। मतलब यह कि जो कुछ आई.एन.डी.आई.ए की बैठकों में दिखाया जा रहा है वह धरातल पर नहीं दिखाई देता। अगर यह गठबंधन हकीकत में है तो पंजाब में कांग्रेस भी सरकार में शामिल हो जानी चाहिए और कांग्रेस को भी प्रदेश सरकार की नीतियों की आलोचना करने से बचना चाहिए। लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है व गठबंधन में शामिल दल अपनी अपनी पार्टियों के हितों को देखते हुए राजनीति करने में व्यस्त है। लगता है उन्हें भी भरोसा है कि इस गठबंधन की गाड़ी भविष्य में शायद ही पटरी पर रह सके।

विपक्षी दलों का यह गठबंधन अभी शुरुआती दौर में है। अभी तो बहुत कुछ तय होना बाकी है। प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार, कौन सा दल कहां से कितनी सीटों पर लड़ेगा, चुनाव प्रचार की कमान किसके हाथ में होगी, ऐसे बहुत सारे मुद्दे हैं जिन पर अभी सहमति होना बाकी है। लेकिन ऐसा लगता है कि विपक्षी एकता के नाम पर इकट्ठा हुए इन दलों में ऐसे गंभीर मुद्दों पर किसी प्रकार की सहमति नहीं हो पा रही है व मात्र यह दिखाने की कोशिश की जा रही है कि नरेंद्र मोदी के विरुद्ध विपक्षी दल एकजुट हो गए हैं। गठबंधन के लिए प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार तय करना जितना कठिन कार्य है उतना ही सीटों का बंटवारा करना है। हर दल चाहेगा कि उसे लोकसभा चुनाव में अधिक से अधिक सीटों पर लड़ने का अवसर मिले।

मुंबई में हुई बैठक में बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सीटों के बंटवारे के लिए जो प्रस्ताव रखा उसे कम्युनिस्ट दलों ने खारिज कर दिया। ममता यह चाह रही है कि बंगाल में तृणमूल कांग्रेस मजबूत है इसलिए कांग्रेस और बामदल उसके प्रत्याशियों का समर्थन करें। यदि बामदल और कांग्रेस ऐसा करेंगे तो बंगाल में उनकी रही सही राजनीतिक जमीन भी खिसक जाएगी। यही समस्या झारखंड, दिल्ली, पंजाब सहित अन्य प्रदेशों में भी दिखेगी। दिल्ली में भी आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच इसे लेकर मतभेद सार्वजनिक हो चुके हैं कि कौन कितनी सीटों पर लड़े। यह प्रश्न पंजाब में भी पेचीदा रूप ले सकता है।

वास्तव में गठबंधन के सभी दल चाहते हैं कि गठबंधन की मजबूती के लिए कांग्रेस त्याग करें। कांग्रेस अगर ऐसा करती है तो वह एक क्षेत्रीय पार्टी की भूमिका में आ जाएगी। इसके बाद प्रधानमंत्री पद की दावेदारी भी बड़ी चुनौती है। अगर कांग्रेस यहां अपना दावा छोड़ती है तो समझा जा सकता है कि देश की राजनीति में उसकी क्या हैसियत रह जाएगी।

विपक्षी गठबंधन की तस्वीर जितनी चमक दमक के साथ दिखाई जा रही है हकीकत में यह उतनी सुंदर नहीं है। ‘जुड़ेगा भारत जीतेगा इंडिया’ कहने से विपक्षी एकता मजबूत नहीं हो जाएगी। सभी दलों के अपने स्वार्थ है, अपनी अपनी महत्वाकांक्षाएं है। मात्र सत्ता प्राप्ति या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से देश को बचाने के नाम पर इकट्ठा हुए इन दलों में न तो आंतरिक सहमति हो सकती है और न ही भविष्य में किसी प्रकार का तालमेल बनता नजर आता है।
– हिमाल चन्द शर्मा