बिखरता जा रहा है इंडी गठबंधन का कुनबा
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विपक्षी इंडी गठबंधन का अस्तित्व दिन प्रतिदिन संकट से घिरता नजर आ रहा है। विपक्षी दलों ने जिस इंडी गठबंधन को मोदी सरकार के विरुद्ध एक बड़ी चुनौती के रूप में पेश किया जा रहा था वह अपने ही बोझ से तहस-नहस होता दिख रहा है। क्योंकि यह गठबंधन मात्र मोदी हटाओ के नारे, राजनीतिक दलों के निजी स्वार्थ व बिना किसी स्पष्ट नीति के बनाया गया था, ऐसे में इसकी दुर्गति होना तय था।
बिहार में जेडीयू और उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय लोक दल की ओर से साथ छोड़ने के बाद अब इंडी गठबंधन के प्रमुख घटक दल आम आदमी पार्टी ने भी स्पष्ट कर दिया है कि पंजाब और चंडीगढ़ में कांग्रेस के साथ कोई गठबंधन नहीं होगा। पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने घोषणा की है कि पंजाब की सभी 13 सीटों के अलावा चंडीगढ़ की एक सीट पर भी आम आदमी पार्टी अकेले चुनाव लड़ेगी। उन्होंने कहा है कि इसी माह के अंत में सभी उम्मीदवारों की घोषणा कर दी जाएगी। उन्होंने लोगों से अपील की है कि जिस तरह विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को 117 में से 92 सीटें दिलाईं थी उसी तरह लोकसभा चुनाव में पंजाब की 13 सीटों के अलावा चंडीगढ़ की एक सीट पर भी उनके उम्मीदवारों को विजयी बनाएं। गठबंधन की उम्मीदें खारिज करने के दौरान केजरीवाल और पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान रैली में अपने संबोधन में कांग्रेस को आड़े हाथों लेने से नहीं चुके। केजरीवाल ने सवाल उठाया कि कांग्रेस पिछले 75 साल में किया गया एक भी काम गिना दे।
स्पष्ट है कि अधिकांश क्षेत्रीय दलों का उद्देश्य गठबंधन की आड़ में कांग्रेस से उसकी राजनीतिक जमीन हथियाना था और जब ऐसा नहीं हो पा रहा है तो वह गठबंधन की मर्यादा को परे धकेलते हुए अपना आधार जुटाने में लग गए हैं। हालांकि लोकसभा चुनावों की तारीखों का ऐलान होने में चंद दिन ही बाकी है लेकिन ऐसा नहीं लग रहा है कि एक राष्ट्रीय दल होने के बावजूद कांग्रेस पार्टी इनकी तैयारी में खुलकर जुट चुकी है। पिछले दो लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने जो गलतियां की थी वही गलतियां अब भी दोहराई जा रही है।
कांग्रेस ने 2019 के चुनाव में मोदी सरकार पर घपले घोटाले के तमाम आरोप लगाए थे लेकिन वे निराधार थे और इसलिए जनता का उन पर असर नहीं पड़ा था। कांग्रेस अब भी उसी तरह के आरोपों का सहारा ले रही है जिस तरह के वह 2019 के चुनावों के समय उछाल रही थी। अब वह जात- पात की राजनीति करने के साथ देश को उत्तर- दक्षिण में विभाजित करने की भी कोशिश कर रही है। आगामी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस बीजेपी को कड़ी टक्कर देने का चाहे जितना दम भरे लेकिन सच यह है कि वह न तो अपने दमखम दिखा पा रही है और न ही आईएनडीआईए का।
नीतीश कुमार इस गठबंधन से अलग हो चुके हैं और माना जा रहा है कि राष्ट्रीय लोकदल भी भाजपा के साथ आ जाएगा। चंद्रबाबू नायडू और सुखबीर बादल भी फिर से भाजपा से जुड़ने की कोशिश करते दिख रहे हैं। इसके भी आसार है कि ओडिशा में बीजू जनता दल और भाजपा में तालमेल हो सकता है। ऐसी स्थितियों में कांग्रेस का भविष्य और भी अस्पष्ट दिखता है क्योंकि बंगाल में ममता बनर्जी अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा कर चुकी है और पंजाब में आम आदमी पार्टी से तालमेल की संभावना खत्म होती दिख रही है। इस सब के बीच राहुल गांधी की न्याय यात्रा का कोई असर नहीं दिख रहा है।
कांग्रेस की समस्या केवल यह नहीं है कि आईएनडीआईए बिखर रहा है बल्कि यह भी है कि वह भाजपा के विरुद्ध कोई ठोस राजनीतिक विकल्प नहीं खड़ा कर पा रही है। जरूरत इस बात की है कि कांग्रेस अपने अस्तित्व की मजबूती को समझे व यह मानकर चले की उसका मुकाबला मोदी- शाह के साथ ही नहीं बल्कि भाजपा- आरएसएस जैसे मजबूत संगठनों से भी है।