February 23, 2025

इजरायल- हमास संघर्ष पर दिखती बेरहम राजनीति

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इजरायल और हमास के बीच जारी संघर्ष को लेकर भारत सरकार की भूमिका पर देश में अलग-अलग प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं। अधिकतर देशवासी इजरायल के पक्ष में नजर आते हैं जबकि ऐसे भी राजनीतिक दल, संगठन है जो हमास के पक्ष व इजरायल के विरोध में अपने आप को खड़ा दिखाने की कोशिश कर रहे हैं। हालांकि इनमें से बहुत सारे संगठनों की इस संबंध में राय उनके राजनीतिक स्वार्थ या फिर जनता में सरकार के नजरिए के विपरीत अपने नजरिए को उचित साबित करने के कारण है।

गत दिवस संयुक्त राष्ट्र में इजरायल- हमास संघर्ष पर तुरंत विराम लगाने के प्रस्ताव पर मतदान के दौरान भारत के अनुपस्थित रहने के निर्णय पर कांग्रेस सहित कुछ अन्य विपक्षी दलों ने केंद्र सरकार का विरोध किया है। हालांकि भारत ने यह कदम आतंकवाद पर अपने रुख के आधार पर उठाया है लेकिन कुछ विपक्षी दल भारत सरकार की इस विचारधारा का शुरू से ही विरोध करते आ रहे हैं। जॉर्डन की ओर से लाए गए इस प्रस्ताव में मानवीय आधार पर गाजा में संघर्ष विराम की अपील की गई थी लेकिन उसमें न तो इजरायल पर हमास के हिंसक व क्रूर हमले का कोई उल्लेख किया गया था और न ही उसके आतंकियों की ओर से 200 से अधिक लोगों को बंधक बनाने का कोई जिक्र था।

ऐसे किसी प्रस्ताव को मानवीय आधार वाला कैसे कहा जा सकता है जिसमें 1400 से अधिक निहत्थे लोगों की बर्बर तरीके से हत्या करने वालों की निंदा करने से बचा गया हो और इस तथ्य को अनदेखा कर दिया गया हो कि इजरायल के साथ कुछ अन्य देशों के 200 से अधिक लोग हमास के आतंकियों ने बंधक बना रखे हैं। जबकि हमास के आतंकी इन बंधक बनाए गए लोगों की आड़ लेकर इजरायल पर रॉकेट हमला करने में लगे हुए हैं।

भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में लाए गए प्रस्ताव में हमास के हमले का उल्लेख करने का आग्रह किया, लेकिन उसे स्वीकार नहीं किया गया। इन स्थितियों में भारत के समक्ष यही एक विकल्प शेष रह गया था कि वह इस एक पक्षीय प्रस्ताव से दूरी बनाए। भारत के साथ 44 देशों ने उक्त प्रस्ताव पर हुए मतदान में भाग नहीं लिया और 14 देशों ने उसके विरोध में मतदान किया जबकि 121 देशों ने इस प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया, इसलिए वह पारित भी हो गया।

जिस मानवीय आधार पर संघर्ष विराम रोकने का आग्रह किया गया उसी मानवीय आधार पर हमास से बंधकों को रिहा करने की अपील की जा सकती थी, लेकिन ऐसा नहीं किया गया। सभी की सहमति से एक संतुलित प्रस्ताव लाकर उसे सार्थक बनाया जा सकता था। लेकिन एक ऐसा प्रस्ताव लाया गया जो समस्या के समाधान में सहायक साबित नहीं हो सकता है।

कांग्रेस सहित कुछ अन्य विपक्षी दल इस बात से क्यों अनभिज्ञ है कि 7 अक्टूबर को हमास ने इसराइल पर जो हमला किया उसे किसी देश पर किए गए आक्रमण से कम नहीं माना जा सकता। देखा जाए तो भारत के कुछ राजनीतिक दलों, संगठनों की तरह ही दुनिया भर के देश अपने-अपने हितों के हिसाब से इजरायल- हमास के पक्ष- विपक्ष में टिप्पणियां कर रहे हैं। हकीकत में इजरायल की पीड़ा, बंधकों के दर्द या फिर गाजा पट्टी के नागरिकों की दुर्दशा की किसी को चिंता नहीं है। इसी को राजनीति कहते हैं और राजनीतिक बेरहम होती है।