February 22, 2025

अविश्वास प्रस्ताव- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दहाड़ से विपक्ष हुआ चित

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अविश्वास प्रस्ताव- प्रधानमंत्री की दहाड़ से विपक्ष हुआ चित

विपक्षी दलों ने अविश्वास प्रस्ताव को अपनी नौटंकी साबित किया

विपक्षी दलों द्वारा केंद्र सरकार के विरुद्ध लाया गया अविश्वास प्रस्ताव विपक्ष के वॉकआउट के बाद ध्वनि मत से गिर गया व लोकसभा को अगले दिन तक के लिए स्थगित कर दिया गया। लोकसभा में तीन दिन तक चले इस अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान जिस प्रकार सत्ता पक्ष विपक्ष पर भारी पड़ता नजर आया उसे देखते हुए यह माना जा सकता है कि आई.एन.डी.आई.ए. गठबंधन दलों ने अविश्वास प्रस्ताव लाकर अपने लिए ही मुसीबत मोल ले ली थी। विपक्षी दलों ने प्रधानमंत्री के लोकसभा में मणिपुर हिंसा पर वक्तव्य की मांग को लेकर चल रहे मानसून सत्र के दौरान संसद की कार्रवाई नहीं चलने दी थी। लेकिन अविश्वास प्रस्ताव के दौरान जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विपक्ष के प्रश्नों का उत्तर दे रहे थे उस दौरान विपक्षी आई.एन.डी.आई.ए. गठबंधन द्वारा सदन से वॉकआउट करना हैरानी जनक रहा। इसका यह मतलब भी निकाला जा सकता है कि विपक्षी गठबंधन का उद्देश्य मणिपुर पर प्रधानमंत्री का स्पष्टीकरण सुनने से अधिक राजनीतिक नौटंकी करना था।

अविश्वास प्रस्ताव पर लगातार तीन दिन चर्चा चली और जब मत विभाजन का समय आया तो विपक्षी गठबंधन ने वॉकआउट कर यह संदेश दे दिया कि जहां वे सदन में अपनी स्थिति से परिचित है वही तीन दिन तक लोकसभा में हुई समय की बर्बादी से भी उन्हें कोई लेना-देना नहीं है। विपक्षी गठबंधन का यह अनुमान पूरी तरह गलत निकला कि वह अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व केंद्र सरकार पर शाब्दिक प्रहार कर उन्हें बचाव के लिए मजबूर कर देंगे। लेकिन हकीकत में चर्चा के दौरान सत्ता पक्ष के प्रहारों से विपक्ष लगातार असहाय नजर आया। ऐसे में कहा जा सकता है कि अविश्वास प्रस्ताव लाकर विपक्षी गठबंधन ने अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली थी। विपक्षी दल भली भांति लोकसभा में अपनी स्थिति से परिचित थे व यह भी जानते थे कि सत्ता पक्ष के पास एक से एक बेहतर वक्ता है। ऊपर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व गृह मंत्री अमित शाह जब अपना पक्ष रखते हैं तो उनकी वाक् क्षमता के आगे टिके रहना काफी मुश्किल होता है। विपक्ष को इसका काफी अनुभव है कि कहीं भी मौका मिलने पर जनता से सीधा संवाद बनाने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी माहिर है व अवसर मिलने पर वे दूसरे पक्ष को बेबस कर देते हैं। फिर भी विपक्ष ने उन्हें अविश्वास प्रस्ताव के माध्यम से पूरा मंच सजाकर दे दिया। कहा गया कि विपक्ष प्रधानमंत्री को सदन में लाना चाहता है और लेकर आ गया।

प्रधानमंत्री मोदी ने भाषण की शुरुआत में ही स्पष्ट कर दिया था कि विपक्ष ने अविश्वास प्रस्ताव लाकर उनकी इच्छा पूरी कर दी है। उन्होंने विपक्षी गठबंधन पर तंज भी किया कि वह तैयारी करके नहीं आता है। संसद में तीन दिनों तक मोदी सरकार की 9 वर्षों की उपलब्धियां का बखान होता रहा व सत्ता पक्ष ने वह सारी उपलब्धियां देश की जनता के समक्ष रख दीं जो मोदी कार्यकाल में पूरी हुई है। इसके अलावा पूर्व में कांग्रेस शासन काल के दौरान हुए घोटालों की सूची भी बता दी गई व आई.एन.डी.आई.ए गठबंधन की अंदरूनी खींचतान की कहानी भी बार-बार याद दिलाई गई। विपक्ष में किसी भी नेता के पास उनके आक्रमण का जवाब नहीं था। विपक्ष के चंद नेताओं को छोड़ दिया जाए तो अधिकतर अपनी क्षेत्रीय राजनीति में ही उलझे रहे। यह समझ पाना मुश्किल है कि गठबंधन को अपनी एकजुटता साबित करने के लिए अविश्वास प्रस्ताव की इस आग में कूदने की क्या जरूरत थी? तीन दिन की चर्चा के दौरान पूरा समय विपक्ष लाचार नजर आया। विपक्षी नेता यह बोलते भी रहे कि वे अविश्वास प्रस्ताव नहीं जीत सकते और प्रधानमंत्री को सदन में बुलाना ही उनका मकसद था। अगर गठबंधन के नेताओं के संयुक्त फैसले आगे भी इसी तरह लिए जाते रहे तो उनका भविष्य भी समझा जा सकता है। मणिपुर की हिंसा पर लोकसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जवाब दिया जिसमें उन्होंने न सिर्फ वहां के नागरिकों को शांति के प्रति आश्वस्त किया बल्कि पूर्वोत्तर की समस्याओं के लिए कांग्रेस को पूरी तरह जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने मणिपुर के नागरिकों को आश्वासन दिया कि जिस प्रकार के प्रयास केंद्र और सरकार राज्य द्वारा किए जा रहे हैं उनसे निकट भविष्य में शांति का प्रकाश अवश्य नजर आएगा। प्रधानमंत्री ने आश्वस्त किया कि सब मिलकर चुनौती का समाधान निकालेंगे व फिर से शांति की स्थापना होगी। कांग्रेस सहित विपक्षी दलों को प्रधानमंत्री ने दो टूक संदेश दिया कि वे राजनीति को जितना मणिपुर से दूर रखेंगे, शांति उतनी ही शीघ्र स्थापित होगी।

प्रधानमंत्री ने पूर्वोत्तर के विकास को अपनी सरकार की प्राथमिकता बताते हुए आरोप लगाया कि वहां की समस्याओं की एकमात्र जननी कांग्रेस ही है। ऐसे में कहा जा सकता है कि विपक्षी गठबंधन ने अविश्वास प्रस्ताव लाकर अपनी फजीहत ही करवाई है। इस विश्वास प्रस्ताव से लोकसभा का समय बर्बाद करने या फिर एक दूसरे पर कीचड़ उछलना के अलावा और कुछ नहीं निकला है। यह अलग बात है कि इस अविश्वास प्रस्ताव से भाजपा को देश के सामने अपना सकारात्मक पक्ष रखने व प्रचार करने का मौका मिला है। आगामी अप्रैल- मई में लोकसभा चुनाव होने हैं। अगर विपक्षी गठबंधन इस तरह की हरकतें कर नरेंद्र मोदी या भाजपा गठबंधन को मजबूती देता रहा तो इस बात का अनुमान लगाया जा सकता है कि आगामी लोकसभा चुनाव परिणाम किसके पक्ष में जा सकते हैं।