सनातन धर्म को गाली देने की राजनीति
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कहीं कांग्रेस को न भुगतना पड़ जाए इस घटिया बयानबाजी का खामियाजा
राजनीतिक दलों के नेता जब कोई वक्तव्य देते हैं तो उनके द्वारा प्रयोग किए गए शब्दों के पीछे एक रणनीति या संकेत छुपे होते हैं। आई.एन.डी.आई. गठबंधन की एक मीटिंग में जब लालू यादव ने राहुल गांधी से कहा कि आप दूल्हा बनें, वे बाराती बनने के लिए तैयार है, तो राजनीतिक क्षेत्र में इस बात का मतलब निकाला गया कि लालू यादव चाहते हैं कि राहुल गांधी देश या आई.एन.डी.आई. गठबंधन का नेतृत्व करें व अन्य दल उनके सहयोगी बनने के लिए तैयार है। पत्रकार भी राजनीतिक दलों के नेताओं के बयानों के मायने खोजते हैं जो समाचार बनते हैं।
राजनीतिक दल या उनके नेता जब भी कुछ कहते हैं तो उसके पीछे उनके या उनके राजनीतिक दल के हित छुपे होते हैं। ऐसा कभी नहीं होता कि कोई नेता अपनी ही पार्टी की गलत नीतियों पर नुक्ताचीनी करे। यह सब आम देशवासी भी समझता है कि राजनेताओं के बयानों में उनके अपने स्वार्थ निहित होते हैं। लेकिन कभी-कभार ऐसे बयान सामने आ जाते हैं जो आम लोगों को सोचने पर मजबूर कर देते हैं कि ऐसा वक्तव्य देने से किसी राजनीतिक दल या नेता को क्या लाभ मिलेगा।
पिछले दिनों तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के बेटे और मंत्री उदयनिधि स्टालिन ने सनातन धर्म को डेंगू और मलेरिया बताते हुए इसको खत्म किए जाने की बात कही। इसके बाद इन्हीं की पार्टी डीएमके के एक अन्य नेता ए राजा ने सनातन धर्म को एड्स और कुष्ठ रोग जैसा बताया। ऐसा तो नहीं है कि यह बयान उन्होंने अनायास ही व बिना राजनीतिक हित विचार किए दे दिया हो। ऐसा भी नहीं मान सकते कि इनकी मानसिक स्थिति ठीक नहीं है। स्पष्ट है कि इस बयानबाजी के पीछे उनके राजनीतिक हित हैं जो आम लोगों को नजर नहीं आ रहे हैं। यह अलग बात है कि आई.एन.डी.आई. गठबंधन में शामिल डीएमके के इन नेताओं की इस बयानबाजी से गठबंधन के अन्य दलों को जवाब देते नहीं बन रहा है।
भले ही कांग्रेस कह रही है कि वह सभी धर्म का सम्मान करती है, लेकिन ऐसा कह देने से देश के बहुसंख्यक समाज और सनातन धर्म में गूढ़ आस्था रखने वालों को संतुष्ट नहीं किया जा सकता। क्योंकि भविष्य में अगर आई.एन.डी.आई. गठबंधन केंद्र की सत्ता में आता है तो यही डीएमके सत्ता में भागीदार होगी। ए राजा ने तो यहां तक कह दिया था कि सनातन धर्म भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिए खतरा है। आई.एन.डी.आई. गठबंधन में ऐसे दल के शामिल होने से क्या सनातन धर्म को मानने वालों में इस गठबंधन के प्रति अविश्वास पैदा नहीं होगा? आश्चर्य यह है कि एमके स्टालिन समेत डीएमके के अन्य नेता उदयनिधि के बयान को सही ठहरा रहे हैं।
डीएमके नेताओं के सनातन धर्म विरोधी आपत्तिजनक बयानों ने इस गठबंधन के लिए एक बड़ी मुसीबत खड़ी कर दी है। कुछ घटक दलों ने डीएमके नेताओं के बयानों से असहमति जताई है। कांग्रेस और आई.एन.डी.आई. गठबंधन के घटक इससे अवगत है कि अतीत में हिंदुत्व या हिंदू संस्कृति पर बेतुके बयान देने वालों को राजनीतिक नुकसान उठाना पड़ा है। लेकिन वे उदयनिधि व ए राजा की आलोचना नहीं कर पा रहे हैं। आज के दौर की राजनीति में सनातन धर्म को गाली देकर केंद्र की सत्ता में आना संभव नहीं है। यह भाजपा की हिंदुत्व के प्रति प्रतिबद्धता का ही परिणाम है कि समय-समय पर उसके विरोधी दलों ने हिंदू समाज को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए नरम हिंदुत्व का सहारा लिया। यहां तक कि राम मंदिर पर आए फैसले का भी खुलकर स्वागत किया। पिछले लोकसभा चुनावों के बाद से तो कांग्रेस भी स्वयं को हिंदुत्व से जोड़ती नजर आई।
डीएमके और उसके सहयोगी दलों के नेताओं को पता होना चाहिए कि सनातन धर्म को अपमानित कर वे भाजपा के वोट बैंक में सेंध नहीं लगा सकते। यह तय है कि भाजपा नेता डीएमके नेताओं के बयानों और उन पर आई.एन.डी.आई. गठबंधन के कई घटक दलों की चुप्पी या फिर लीपापोती को मुद्दा बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। हो सकता है हिंदू या सनातन धर्म को गाली देने से डीएमके को तमिलनाडु में कोई राजनीतिक लाभ मिल रहा हो। लेकिन आई.एन.डी.आई. गठबंधन दलों को देश के अन्य हिस्सों में इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। क्योंकि आई.एन.डी.आई. गठबंधन में शामिल दल इस घटिया बयानबाजी की खुलकर निंदा भी नहीं कर पा रहे हैं।
चुनावी वर्ष में डीएमके के नेताओं की यह बयानबाजी भाजपा को कितना लाभ पहुंचाएगी या आई.एन.डी.आई. गठबंधन दल इस बयान बाजी से कितने प्रभावित होंगे यह आने वाले दिनों में सामने आएगा। लेकिन यह सत्य है कि एक राष्ट्रीय राजनीतिक पार्टी के रूप में कांग्रेस को सनातन धर्म को लेकर ऐसी स्तरहीन बयानबाजी करने वाले दल के साथ मिलकर चुनाव लड़ने का खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।
– हिमाल चन्द शर्मा