December 22, 2025

नशा मुक्ति के लिए एक प्रखर सामाजिक आंदोलन की आवश्यकता

राष्ट्रीय जनगणना आंकलन नशा मुक्ति के लिए एक प्रखर सामाजिक आंदोलन की आवश्यकता

एक रिपोर्ट के अनुसार भारत दुनियां का सबसे युवा देश है। किसी भी देश की तरक्की युवा शक्ति पर निर्भर करती है। युवा शक्ति को राष्ट्र शक्ति भी माना जाता है। किसी शायर ने कहा था “ तलवारों की धारों पर इतिहास हमेशा बनता है जिस ओर जवानी चलती है उस ओर जमाना चलता है ” परन्तु जब मेरे देश की युवा पीडी नशे के दलदल में फंसी हो तो देश का भविष्य अंधकारमय दिखाई देता है। आज समाज के सभी वर्गों में नशे की लत बुरी तरह घर कर गई है। विशेष रूप से युवा वर्ग खतरनाक हद तक इसकी लपेट में आता जा रहा है। वर्तमान समय में नशाखोरी विशेषकर (चिट्टा और वैपिंग) की समस्या एक अति संवेदनशील मुद्दा बन गया है। इसका गंभीरता से विश्लेषण करने की जरूरत है। वास्तविकता यह है कि नशीले पदार्थों का व्यापार वैश्विक स्तर पर हो रहा है। इसमें स्थानीय से लेकर अन्तर्राष्ट्रीय स्तर तक अति आधुनिक तकनीकें उपयुक्त हो रही हैं। यह कारोबार न केवल पूरी तरह संगठित है, बल्कि आधुनिक हथियारों से भी लैस है। इसमें राजनीतिक अपराधी, माफिया नेटवर्क, अन्तराष्ट्रीय ट्रांजिट प्रणालियाँ अनेक ढंगों से और अनेक स्तरों पर संलिप्त है। मैक्सिको,ब्राजील, भारत, चीन, अमेरिका, रूस, यूरोप, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, अफ्रीका, नाइजीरिया, श्रीलंका इत्यादि देशों की सीमाओं और अंदरूनी केन्द्रों पर यह कारोबार फैला हुआ है। पुलिस, कर्मचारी, नेता, प्रसाशनिक अधिकारी, व विचोलिये इस तंत्र में संलिप्त हैं। औपनिवेश्क काल में अंग्रेजो ने बहुत गहरी साजिश के अधीन यहाँ के नौजवानो को नशेडी बनाकर कमजोर करने का लम्बे समय तक प्रयास किया। हम आज भी इसका परिणाम भुक्त रहें है और पता नहीं आगे कब तक भुगतेंगें।
नशे के बारे में राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जी ने कहा था “ मदपान मनुष्य को क्षणभर दीवाना बनाता है, मद उसे खा जाता है और उसे पता भी नहीं होता। यदि मुझे एक दिन के लिए शासन मिले तो मैं तत्काल सारे देश में नशाबंदी लागू कर दूंगा।” वैसे तो सभी सरकारें देशभक्त और गाँधीवादी होने का दावा करती हैं लेकिन नशे पर रोक लगाने में पूरी तरह नाकाम रही हैं। इस समस्या पर सिर्फ भाषणों का उद्योग पनपा है। आजकल विनाशकारी नशीले पदार्थो का अख़बारों और टेलीविजन के माध्यम से प्रचार हो रहा है। हमारे फ़िल्मी सितारे और सुपरस्टार खिलाडी मात्र कुछ पैसों के लिए अपनी दिलकश अदाओं से इन पदार्थो की विज्ञापनबाजी करते हैं। हमारी चुनी हुई सरकारें इस विज्ञापनबाजी पर प्रतिबंध लगाने में विफल रहीं हैं। शराब की बोतल, गुटका, तम्बाकू, सिगरेट इत्यादि की डिब्बियों पर लिखा होता है “इसका सेवन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है” इतना लिखकर कम्पनियां अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो जाती हैं।
हिमाचल प्रदेश जैसे छोटे से प्रान्त के छोटे – छोटे कस्बे, गाँव और शहर नशीले पदार्थों के गढ़ बन चुके हैं। रेव पार्टियों में हर रोज हजारों युवक-युवतियां नशीले पदार्थों का सेवन करते हैं। रही सही कसर अब चिट्टा, समैक, कोकीन, हैरोइन, स्नेक वाइट, भांग और टीके पूरी कर रहें हैं। युवा पीढ़ी आर्थिक, वौदिक के साथ -साथ स्वास्थ्य से भी बर्बाद हो रही है। इस स्थिति से निपटने के लिए एक प्रखर सामाजिक आन्दोलन की आवश्यकता है। आत्मकेंद्रित सोच के कारण हम ऐसी समस्याओं पर मूकदर्शक बन कर नहीं रह सकते। भारत के युवा वर्ग को बर्बाद करने की इस सुनियोजित साजिस को असफल बनाने के लिए सभी राजनीतिक दलों , सामाजिक व धार्मिक संगठनों, सम्प्रदायों, सरकारी व गैर – सरकारी संस्थाओं को आपसी गिले शिकवे भुलाकर नशे के विरुद्ध जागरूकता आन्दोलन शुरू करना चाहिए। सामाजिक सम्मेलनों, सेमिनारों, नाटकों, मेलों और मीडिया में भी जोरदार प्रचार अभियान चलाया जाना चाहिए। नशा माफिया के खिलाफ सरकार और पुलिस प्रशासन का हर प्रकार से सहयोग करना होगा।
हमारे शास्त्रों में लिखा है कि “बुद्धि लुम्पति यद द्रव्यम मद्कारी तद उच्चते:” यानि जिस पदार्थ के सेवन से बुद्धि का विनाश हो जाता है उसे मद्कारी द्रव्य कहते हैं। पशुओं और मनुष्यों में मात्र बुद्धि और विवेक का ही अंतर है। हमारा देश विविधताओं का देश है। यहाँ पर हर प्रकार की मान्यताओं के लोग रहते हैं और उनकी जीवन शैलियाँ भी भिन्न है। कई जगहों में धार्मिक अनुष्ठानो में या शादी-ब्याह जैसे सामाजिक समारोहों में नशे के कुछ प्रकारों की मान्यता है। जैसे शिवरात्रि पर भांग का उपयोग, शादी-ब्याह में शराब व सिगरेट का खुला उपयोग। हमारे फिल्म उद्योग भी हीरो हीरोइन के जीवन की कुछ घटनाओं को चित्रित करने के लिए नशे के दृश्यों को फिल्माकिंत करते हैं, जिसे किशोरावस्था के युवा स्टाइल स्टेटमेंट के रूप में इनका प्रयोग करते हैं। यहाँ तक तो स्थिति सामान्य थी परन्तु चिट्टा जैसे नशे ने पिछले कुछ वर्षों से समाज में हडकंप मचा दिया है। चिट्टे का शिकार अधिकतर शिक्षित और संभ्रांत परिवारों के बच्चे होते हैं, क्योंकि महंगा नशा करने के लिए जेब खर्च भी अधिक चाहिए। ड्रग और चिट्टा माफिया की गिद्ध दृष्टी देश व प्रदेश के शिक्षण संस्थानों पर है। हमें मिलकर इस सारे ताने– बाने को तोडना है। लोगों को मानसिक तौर पर नशाखोरी के विरुद्ध तैयार करना होगा। लोगों को बताना होगा कि नशा कभी अकेला नहीं आता। यह अपने साथ भूखमरी, गरीबी, हिंसा- मारपीट, अपराध, बीमारी, यौनाचार और अंत में मौत भी लेकर आता है।
लेखक :- डॉ. रिंकू योगा

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *