February 24, 2025

संसद को राजनीति का अखाड़ा बनाने से बचें सांसद

संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान लोकसभा व राज्यसभा के 146 सांसदों का संसद में अमर्यादित व्यवहार करने के दोष में किए गए निलंबन पर सत्ता पक्ष व विपक्ष में आरोप प्रत्यारोप लगाने का दौर जारी है। इंडी गठबंधन इसे लेकर देशभर में प्रदर्शन कर रहा है वहीं भाजपा व सहयोगी दल विपक्षी दलों के व्यवहार को लेकर जनता के बीच पहुंच रहे हैं। संसद में सांसदों द्वारा असंसदीय भाषा बोलने व अमर्यादित व्यवहार करना आम बात हो चुकी है। विपक्ष द्वारा सत्ता पक्ष का विरोध सड़कों पर ही नहीं बल्कि संसद में भी असभ्य ढंग से हो रहा है। सत्ता पक्ष की गलत नीतियों का विरोध करना विपक्ष का दायित्व है लेकिन यह विरोध मर्यादित व संसद की गरिमा बनाए रखते हुए किया जाना चाहिए। संसद में विपक्ष के हंगामा के चलते लोकसभा और राज्यसभा में विपक्षी सांसदों का रिकार्ड संख्या में निलंबन किया जा चुका है। इतनी बड़ी संख्या में सांसदों के निलंबन से जाने अनजाने यही संदेश निकला है कि सत्ता पक्ष विपक्ष की बात सुनने समझने को तैयार नहीं है। लेकिन इस तथ्य की भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि संसद की सुरक्षा में सेंध को लेकर गृह मंत्री अमित शाह के बयान की मांग कर रहे विपक्षी दलों के सांसद जानबूझकर ऐसी परिस्थितियों को पैदा कर रहे थे जिनसे उनका निलंबन हो जाए। आखिर जब इस पर सहमति बन चुकी थी कि कोई भी संसद सदस्य अध्यक्ष के आसन के समक्ष नहीं जाएगा और नारे लिखी तख्तियां नहीं लहराएगा तब भी ऐसा जानबूझकर किया गया। इसलिए इस नतीजे पर पहुंचने के अलावा कोई उपाय नहीं की विपक्षी सांसदों ने एक प्रकार से अपने निलंबन का आधार जानबूझकर तैयार किया है। यह सही है कि विपक्षी दलों की निगाह आगामी लोकसभा चुनावों पर है और वे जनता का ध्यान अपनी ओर खींचना चाहते हैं। विपक्ष अपनी इस मांग पर अड़ा रहा कि संसद की सुरक्षा में सेंध के मामले में गृह मंत्री को बयान देना चाहिए। वही सत्ता पक्ष यह दोहराता रहा कि संसद के अंदर सुरक्षा की जिम्मेदारी लोकसभा अध्यक्ष की है और ऐसे में गृह मंत्री के बयान की मांग उचित नहीं है। तृणमूल कांग्रेस के सांसद कल्याण बनर्जी ने संसद परिसर में राज्यसभा के सभापति व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की नकल उतारी व उनके इस कृत्य पर राहुल गांधी समेत विपक्षी सांसदों का एक समूह जिस तरह आनंदित होता दिखा, उसने संसद की गरिमा गिराने का ही काम किया है। हैरानी की बात यह है कि कल्याण बनर्जी अपने कृत्य का यह कहकर बचाव कर रहे हैं कि किसी की नकल उतारना एक कला है। यह दुखद है कि संसद परिसर में उपराष्ट्रपति की नकल उतार कर उनका उपहास उड़ाया जाए व उसकी आलोचना होने पर उसे कला बता दिया जाए। यह भी दुर्भाग्यपूर्ण है कि विपक्षी दलों के सांसदों को कल्याण बनर्जी के आचरण में कुछ भी अनुचित नहीं दिख रहा है। पिछले काफी अर्से से संसद भवन एक तमाशा बनता दिखाई दे रहा है। संसद का कोई भी सत्र बिना विपक्ष के लगातार हंगामे के पूरा नहीं हो रहा है। स्पष्ट है कि यह सब जानबूझकर किया जा रहा है। सांसदों को जिस कार्य के लिए संसद में भेजा जाता है उसके अनुरूप किसी प्रकार का कार्य विपक्षी सांसद करते नहीं दिख रहे हैं। सांसदों को भी समझना चाहिए कि उनकी कुछ जिम्मेवारी व दायित्व भी है। देश भर में राजनीति करना उनका अधिकार है लेकिन संसद को राजनीति का अखाड़ा बनाने से उन्हें बचना चाहिए।