चिंताओं को दूर करने वाली देवी है मां चिंतपूर्णी
1 min read51 शक्तिपीठों में प्रमुख स्थान रखता है मां चिंतपूर्णी धाम
हिमाचल प्रदेश को देवी देवताओं की भूमि माना जाता है। हिमाचल प्रदेश के जिला ऊना में स्थित मां चिंतपूर्णी मंदिर भक्तों की अगाध श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक है। मां चिंतपूर्णी को चिंताओं का हरण करने वाली देवी के रूप में जाना जाता है। चिंतपूर्णी मंदिर को 51 शक्तिपीठों में से एक माना गया है। हिमाचल प्रदेश के जिला ऊना मुख्यालय से लगभग 50 किलोमीटर दूर जिला कांगड़ा की सीमा पर स्थित मां चिंतपूर्णी के भव्य मंदिर में दूर-दूर से श्रद्धालु आकर माता का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
क्यूं है मान्यता
हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार जब माता सती के पिता दक्ष प्रजापति द्वारा आयोजित यज्ञ में भगवान शंकर को नहीं बुलाया गया तो अपमान व क्रोध में आकर माता सती ने यज्ञ के हवन कुंड में कूद कर प्राण त्याग दिए। माता सती के प्राण त्याग देने का समाचार सुनकर जब भगवान शंकर वहां पहुंचे तो क्रोध व शोक में आकर माता के शव को उठाकर तांडव करने लगे। शिव के तांडव से समूचे ब्रह्मांड में हाहाकार मच गया। स्थिति के गंभीरता को देखते हुए व ब्रह्मांड को बचाने के लिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शव के अनेकों टुकड़े कर दिए। माता सती के यह अंग अलग-अलग 51 स्थानों पर गिरे हैं जिन्हें शक्तिपीठ कहा जाता है।
ऐसा माना जाता है कि चिंतपूर्णी नामक स्थल पर माता सती का मस्तिष्क गिरा था। इसी कारण इस स्थान को छिन्नमस्तिका धाम के नाम से भी जाना जाता है। जबकि कुछ अन्य कथाओं में माना गया है कि यहां भगवती के चरण गिरे थे। चिंतपूर्णी में विराजमान देवी की छिन्नमस्तिका देवी के रूप में मान्यता है।
चिंतपूर्णी मंदिर का इतिहास
पौराणिक कथाओं के अनुसार अपनी गरीबी से परेशान होकर एक बार माई दास नामक एक पंडित जो देवी दुर्गा के अनन्य भक्त थे, अपने ससुराल जा रहे थे। रास्ते में अंधेरा हो जाने के बाद वह छपरोह नामक स्थान पर एक बरगद के पेड़ के नीचे विश्राम करने के लिए रुक गए। रात्रि में सपने में माता ने उन्हें एक छोटी बालिका के रूप में दर्शन दिए। नींद खुलने के बाद पंडित माई दास अपने ससुराल की तरफ निकल पड़े।
ससुराल से लौटते वक्त पंडित माई दास फिर उसी बरगद के पेड़ के नीचे रात में विश्राम करने हेतु रुके व बरगद के पेड़ के नीचे बैठते ही वे ध्यान की अवस्था में चले गए। तब माता ने पंडित माई दास को अपने दिव्य रूप में दर्शन दिए व कहा कि वह इस बरगद के पेड़ के नीचे बास करेंगी। माता ने पंडित से कहा कि इस बरगद के पेड़ के नीचे स्थित पत्थरों के नीचे जल का प्रवाह है। माई दास ने सुबह जब पत्थर हटाए तो वहां एक नदी जैसा जल प्रवाह मिला। जिससे आज भी माता चिंतपूर्णी का जलाभिषेक किया जाता है। पंडित माई दास ने लोगों के सहयोग से वहां एक मंदिर का निर्माण किया व पिंडी रूप में स्थापित माता की पूजा अर्चना शुरू की। आज भी उनका परिवार वहां पुजारी के रूप में माता की सेवा करता है।
चिंतपूर्णी में लगने वाले मेले
धर्मस्थल चिंतपूर्णी में वैसे तो हमेशा उत्सव जैसा माहौल रहता है लेकिन नवरात्रों में यहां भक्तों की खूब भीड़ रहती है। माता का आशीर्वाद पाने के लिए दूर-दूर से यहां बड़ी संख्या में भक्त आते हैं। यहां साल में तीन बार मेले का आयोजन होता है। मार्च- अप्रैल व सितंबर – अक्टूबर में मेला नवरात्रों के दौरान लगता है जबकि जुलाई- अगस्त में यह शुक्ल पक्ष से पहले 10 दिनों के लिए आयोजित किया जाता है।
मंदिर के खुलने का समय
माता चिंतपूर्णी का मंदिर प्रातः 5:00 बजे से देर शाम 10:00 बजे तक भक्तों के लिए दर्शन हेतु खुला रहता है। सामान्य भक्तों के लिए मंदिर में कोई प्रवेश शुल्क नहीं है लेकिन हाल ही में राज्य सरकार ने वीआईपी दर्शन श्रेणी में पांच लोगों के लिए 1100 रुपयों की रसीद काटने का प्रावधान किया है, जिसका काफी विरोध हो रहा है।
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चिंतपूर्णी के आसपास के धार्मिक व अन्य पर्यटन स्थल
होशियारपुर- धर्मशाला रोड पर चिंतपूर्णी मंदिर से लगभग सात- आठ किलोमीटर पहले बोम्बे पिकनिक स्पॉट एक बेहतर मनोरंजन स्थल है जहां परिवार के साथ अच्छा समय व्यतीत किया जा सकता है।
इसके अलावा चिंतपूर्णी से लगभग 50 किलोमीटर दूर कांगड़ा में स्थित माता बजरेश्वरी देवी मंदिर भी प्रमुख धार्मिक स्थल है। यहां कांगड़ा का किला भी है जिसे देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। चिंतपूर्णी से 35 किलोमीटर दूर स्थित ज्वालामुखी मंदिर भी विश्व प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है।
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चिंतपूर्णी मंदिर कैसे पहुंचे
अगर हवाई मार्ग से आना चाहते हैं तो निकटवर्ती गग्गल हवाई अड्डा यहां से लगभग 60 किलोमीटर दूर है जबकि अमृतसर हवाई अड्डा 160 व चंडीगढ़ हवाई अड्डा 150 किलोमीटर की दूरी पर है। रेल मार्ग से यहां आने के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन अंब है जो कि लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर है। चिंतपूर्णी के लिए दिल्ली, चंडीगढ़,शिमला, लुधियाना, अमृतसर आदि लगभग सभी स्थानों से बस सेवा की उपलब्ध है।