November 21, 2024

माता नैना देवी मंदिर- भक्तों की श्रद्धा का केंद्र है यह शक्तिपीठ

1 min read
हिमाचल प्रदेश के धार्मिक स्थलों में प्रमुख है माता नैना देवी मंदिर

हिमाचल प्रदेश के धार्मिक स्थलों में प्रमुख माता नैना देवी मंदिर

हिमाचल प्रदेश के धार्मिक स्थलों में प्रमुख है माता नैना देवी मंदिर

हिमाचल प्रदेश के जिला बिलासपुर की शिवालिक पर्वत श्रेणी की पहाड़ियों पर स्थित माता नैना देवी मंदिर एक प्रमुख धार्मिक स्थल है। मान्यता है कि इस स्थान पर देवी सती के नेत्र गिरे थे। उत्तर भारत की नौ देवियों की यात्रा में यह स्थान भी शामिल है। वैष्णो देवी से शुरू होने वाली नव देवी यात्रा में मां चामुंडा देवी, मां बज्रेश्वरी देवी, मां ज्वाला जी, मां चिंतपूर्णी, मां नैना देवी, मां मनसा देवी, मां कालिका देवी, मां शाकंभरी देवी शामिल है। माता नैना देवी मंदिर में स्थित पीपल का पेड़ भी श्रद्धालुओं के लिए मुख्य आकर्षण का केंद्र है, जो की अनेकों शताब्दी पुराना है। मंदिर के समीप ही एक गुफा है जिसे माता नैना देवी गुफा के नाम से जाना जाता है। माता नैना देवी मंदिर हिंदुओं के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक है।

क्या है मान्यता ?

पुराणों के अनुसार माता नैना देवी मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक शक्ति पीठ है। धार्मिक ग्रंथो के अनुसार इन शक्तिपीठों में माता सती के शरीर के अंग गिरे थे। कथा अनुसार राजा दक्ष ने अपनी पुत्री सती का विवाह भगवान शिव के साथ देवताओं के कहने पर मजबूरी में ही किया था क्योंकि वे भगवान शिव को पसंद नहीं करते थे। एक समय पर राजा दक्ष ने एक यज्ञ का आयोजन किया जिसमें उन्होंने माता सती व भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया। फिर भी माता सती वहां पहुंच गई व वहां भगवान शंकर को न बुलाए जाने से अपमानित व क्रोधित होकर उन्होंने हवन कुंड की आग में कूद कर अपनी जान दे दी।

भगवान शिव को जब इस बात का पता चला तो वे वहां पहुंच गए व माता सती के शरीर को हवन कुंड से निकलकर क्रोध में आकर तांडव करने लगे। जिस कारण सारे ब्रह्मांड में हाहाकार मच गया। समूचे ब्रह्मांड को इस संकट से बचाने के लिए भगवान विष्णु ने माता सती के शरीर को अपने सुदर्शन चक्र से 51 भागों में काट दिया और जो अंग जहां गिरा वह शक्तिपीठ बन गया। नैना देवी नामक इस पवित्र स्थल पर माता के नेत्र गिरे थे। इसी कारण इस पवित्र स्थल को नैना देवी के नाम से जाना जाता है।

नैना देवी के प्रमुख त्यौहार एवं मेले

नैना देवी में हर दिन बड़ी संख्या में भक्त आकर माता का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं लेकिन नवरात्रि के दिनों में यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ देखने को मिलती है। चैत्र मास और आश्विन मास के नवरात्रों के दौरान यहां विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। देश के कोने-कोने से श्रद्धालु यहां आकर माता की कृपा प्राप्त करते हैं। इसके अलावा श्रावण अष्टमी के अवसर पर भी यहां आकर्षक मेलों का आयोजन किया जाता है।

यह भी पढ़ें चिताओं से मुक्ति देती है मां चिंतपूर्णी

कैसे पहुंचें नैना देवी मंदिर

हवाई मार्ग से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए चंडीगढ़ हवाई अड्डा नजदीक है जो यहां से लगभग 100 किलोमीटर की दूरी पर है। रेल मार्ग से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए आनंदपुर साहिब रेलवे स्टेशन यहां से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। सड़क मार्ग से आने वाले श्रद्धालु चंडीगढ़, रोपड़, आनंदपुर साहिब होते हुए यहां पहुंच सकते हैं। दिल्ली से नैना देवी की दूरी लगभग 350 किलोमीटर है। जबकि यहां से जालंधर 115 किलोमीटर, लुधियाना 125 किलोमीटर,चिंतपूर्णी 110 किलोमीटर व चंडीगढ़ 105 किलोमीटर की दूरी पर है।

अन्य सुविधाएं

श्री नैना देवी में मंदिर तक पहुंचने के लिए रोपवे (उड़न खटोले) की भी व्यवस्था है।

सिख धर्म में भी है मां नैना देवी की मान्यता

सिखों के दशम गुरू व खालसा पंथ के संस्थापक गुरू गोविंद सिंह भी माता नैना देवी के अनन्य भक्त थे। उन्होंने यहां एक वर्ष से अधिक समय तक हवन यज्ञ किया था। गुरू गोविंद सिंह जी द्वारा रचित दशम ग्रंथ ‘चंडी का वार’ के अनुसार मां दुर्गा ने महिषासुर का वध बीरखेत में किया था। यह स्थान प्रसिद्ध शाकंभरी देवी शक्ति पीठ है जो कि शिवालिक पर्वत श्रेणी में ही मौजूद है।

नजदीकी धार्मिक एवं पर्यटन स्थल

श्री नैना देवी से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित श्री आनंदपुर साहिब में सिखों का प्रसिद्ध व धार्मिक महत्व का गुरुद्वारा केसगढ़ साहिब व किला आनंदगढ़ है जहां गुरु गोविंद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना की थी। जबकि श्री नैना देवी से लगभग 30 किलोमीटर दूरी पर व श्री आनंदपुर साहिब से 10 किलोमीटर दूर सिखों का अन्य धार्मिक महत्व का स्थान श्री कीरतपुर साहिब है। इसके अलावा श्री नैना देवी से लगभग 25 किलोमीटर दूरी पर विश्व प्रसिद्ध बांध भाखड़ा डैम व गोविंद सागर झील स्थित है।