भूमि से जुड़े विवाद प्रशासन, न्यायिक तंत्र और आम जनता के लिए बड़ी चुनौती बने हुए हैं
भारत में भूमि सिर्फ एक संपत्ति ही नहीं, बल्कि लोगों की आजीविका, पहचान और सामाजिक संबंधों की आधारशिला है, लेकिन इसी भूमि से जुड़े विवाद प्रशासन, न्यायिक तंत्र और आम जनता के लिए बड़ी चुनौती बने हुए हैं। तहसील कार्यालयों और न्यायालयों में लंबित हजारों भूमि विवाद इस समस्या की गंभीरता को दर्शाते हैं। तहसीलदार और राजस्व अधिकारी इन विवादों को सुलझाने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, लेकिन उन्हें अक्सर बाहरी दबाव, सुरक्षा चिंताओं और संसाधनों की कमी के कारण कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। साथ ही, कुछ बिचौलिए और भ्रष्ट तत्व नागरिकों को गुमराह कर न केवल अनुचित लाभ कमाते हैं, बल्कि प्रशासनिक प्रक्रिया को भी प्रभावित करते हैं। ऐसे में, यह आवश्यक है कि भूमि विबाद को निष्पक्ष और पारदर्शी बनाया जाए।
सरकारी योजनाएं और डिजिटल सुधार: सरकार ने भूमि विवादों को कम करने के लिए कई योजनाएं लागू की हैं। डिजिटल भूमि रिकॉर्ड आधुनिकीकरण कार्यक्रम 2008 के तहत भूमि रिकॉर्ड को डिजिटल रूप में संरक्षित करने की योजना से पारदर्शिता बढ़ी है, लेकिन अभी भी
भूमि विवादों के प्रमुख कारण पारिवारिक संपत्ति के बंटवारे को लेकर सहमति न बनने से अक्सर भूमि विवाद बढ़ते हैं। भूमि रिकॉर्ड की अस्पष्टता यानी गलत नामांतरण, अधूरी प्रविष्टियां और पुराने दस्तावेजों की गड़बड़ी भी विवाद की जड़ हैं। सीमा निर्धारण यानी डिमार्केशन में गड़बड़ी से दो पक्षों के बीच विवाद होते हैं। सरकारी भूमि पर अतिक्रमण/कब्जे, फर्जी दस्तावेज और धोखाधड़ी, रजिस्ट्रियों और प्रमाण पत्रों के नाम पर अनावश्यक शुल्क भी विवाद की श्रेणी में आते हैं।
जमीनी स्तर पर सुधार की जरूरत है। अच्छी बात यह है कि स्वामित्व योजना के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में ड्रोन मैपिंग के जरिए जमीन का डिजिटल रिकॉर्ड तैयार किया जा रहा है। रेवन्यू मैनेजमेंट सिस्टम पोर्टल भी बना है, जिसमें राजस्व मामलों को ऑनलाइन करने की पहल की गई है। निश्चित रूप से इससे नामांतरण, इंतकाल और अन्य कार्यों में पारदर्शिता आ रही है। ई कोर्ट्स और ऑनलाइन केस ट्रैकिंग से नागरिक अपने केस की स्थिति ऑनलाइन देख सकेंगे। इससे अनावश्यक देरी और भ्रष्टाचार कम होगा।
तहसीलदारों व राजस्व अधिकारियों की सुरक्षा व सुविधाएं: तहसीलदार और राजस्व अधिकारी ही भूमि विवादों के समाधान की पहली कड़ी होते हैं, लेकिन उनके सामने भी कई चुनौतियां होती हैं। कई बार भूमि मामलों में बाहरी हस्तक्षेप किया जाता है, जिससे निष्पक्ष निर्णय प्रभावित होते हैं। अतिक्रमण हटाने या विवादित भूमि की कार्रवाई के दौरान राजस्व अधिकारियों को शारीरिक हमलों का खतरा रहता है। जिम्मेदारियों और जोखिम के अनुरूप उनका वेतन पर्याप्त भी कमी रह जाती है।
सुविधाओं के लिए सरकार उठाए ये कदम :
सरकार को तहसीलदारों और राजस्व अधिकारियों के लिए विशेष सुरक्षा व्यवस्था करनी चाहिए। बकायदा प्रोटेक्शन यूनिट बनानी चाहिए। जोखिम भत्ता और फील्ड अलाउंस भी बढ़ाना चाहिए। बाहरी दबाव से बचाव के लिए सख्त नीति समय की जरूरत है। इसके अलावा पारदर्शी
स्थानांतरण नीति बनाई जाए, जिससे अनावश्यक दबाव में ट्रांसफर न कराया जा सके। यह नहीं, डिजिटल प्रशासन को बढ़ावा देते हुए भूमि विवादों के त्वरित निपटारे के लिए ऑनलाइन केस ट्रैकिंग सिस्टम को मजबूत किया जाना चाहिए। डिजिटल हस्ताक्षर और ई-गवर्ने को भी बढ़ावा देना चाहिए। रजिस्ट्रियों और अन्य दस्तावेजों के लिए सरकारी शुल्क को सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित किया जाए तो इससे पारदर्शिता आएगी। बिचौलियों और भ्रष्ट तत्वों पर सख्त कार्रवाई हो, ताकि आम नागरिकों का शोषण रोका जा सके। इस नेक काम के लिए राजस्व कार्यालयों में हेल्प डेस्क स्थापित किए जाएं ताकि लोग सही प्रक्रिया समझ सकें। भूमि विवादों का समाधान केवल कानूनी प्रक्रिया तेज करने से संभव नहीं होगा, बल्कि इसके लिए प्रशासन, सरकार और जनता-सभी को मिलकर प्रयास करने होंगे। जब पारदर्शी प्रशासन, सुरक्षित अधिकारी और जागरूक जनता एक साथ मिल कर कार्य करेगी, तभी भूमि विवादों का स्थायी समाधान संभव होगा।
-राधिका सैनी, तहसीलदार
