कनाडा को पाकिस्तान का समकक्ष साबित करने पर तुला भारत
1 min read
भारत और कनाडा के बीच जारी तनातनी में भले ही भारत का पलड़ा भारी पड़ता नजर आ रहा है लेकिन इस बात पर भारत को हमेशा ध्यान रखना होगा कि अमेरिका कनाडा का प्राकृतिक सहयोगी है व भारत अमेरिका की एक जरूरत है। अमेरिका भारत के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र में सरकार बनने के बाद से ही नरम रुख अपनाए हुए हैं। वह हमेशा पाकिस्तान का पक्षधर रहा है। ऐसे में उसका भारत- कनाडा के मुद्दे पर परोक्ष अपरोक्ष रूप से कनाडा के साथ दिखाई देना स्वाभाविक है।
यह अलग बात है कि भारत आज वैश्विक राजनीति में जिस दौर से गुजर रहा है उसमें वह किसी देश की सहमती असहमति की परवाह नहीं कर रहा है व अपने देश के हितों के हिसाब से ही अपने रास्ते पर आगे बढ़ रहा है। पिछले दशकों से कनाडा भारत विरोधियों विशेष कर खालिस्तान समर्थकों की पनाहगाह बना हुआ है व भारत सरकार उसके विरुद्ध कुछ विशेष नहीं कर पा रही थी। लेकिन वर्तमान केंद्र सरकार ने उचित समय मिलने पर कनाडा व वहां के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो को बचाव की मुद्रा में ला दिया है। यह पहली बार देखने को मिला है कि भारत ने कनाडा पर ऐसा प्रहार किया है कि वह कोई मजबूत, दमदार प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं कर पा रहा है। ऐसा नहीं लग रहा है कि जस्टिन ट्रूडो को आगे भी कोई राहत मिल पाएगी क्योंकि भारत से मुंह की खाने के बाद कनाडा में भी उसके लिए समस्याएं बढ़ गई है। अपने राजनीतिक स्वार्थ के कारण भारत के साथ रिश्ते बिगाड़ने पर आमादा जस्टिन ट्रूडो की बीते दिनों कनाडाई संसद में एक नाजी को सम्मानित करने पर दुनिया भर में फजीहत हुई है। इस घटनाक्रम के बाद घरेलू राजनीतिक परिदृश्य उनके लिए फिसलन भरा साबित हो रहा है। उनकी लोकप्रियता में निरंतर गिरावट का सिलसिला बना हुआ है और फिलहाल स्थिति में कोई सुधार होता नजर नहीं आ रहा है। इसके विपरित उनके मुख्य प्रतिद्वंद्वी कंजरवेटिव नेता पीइरे पोलिविरे की लोकप्रियता का ग्राफ लगातार ऊपर चढ़ रहा है। ऐसा प्रतीत होता है कि कनाडा जिस दिशा में जा रहा है उसे लेकर वहां भारी असंतोष है। इस दिशाहीन स्थिति को संभालने में जस्टिन ट्रूडो अक्षम दिखाई पड़ रहे हैं। ऐसे मुश्किल समय में अपनी स्थिति सुधारने के लिए उन्हें अपनी विदेश नीति का सहारा लेना चाहिए था लेकिन ट्रूडो इस मोर्चे पर भी मात खा गए हैं। भारत के साथ अनावश्यक तनातनी और फिर अपनी संसद में एक नाजी के सम्मान पर भी दुनिया के निशाने पर आ गए हैं। इस मुद्दे पर कनाडा संसद के स्पीकर ने भले ही इस्तीफा दे दिया हो और ट्रूडो ने भी माफी मांग कर मामले को रफा दफा करने की कोशिश की हो लेकिन प्रकरण का पटाक्षेप इतना आसानी से होता नहीं दिखता। निज्जर हत्याकांड में भारत के विरुद्ध लगाए कनाडाई प्रधानमंत्री के आरोपों के पीछे पश्चिम में एक तबका इसे गैर जिम्मेदार नेतृत्व और निरर्थक बयान बाजी के रूप में देख रहा है। संयुक्त राष्ट्र महासभा में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने दो टूक लहजे में कहा है कि आतंकवाद, अलगाववाद और हिंसा को लेकर राजनीतिक सुविधावादी नजरिया नहीं अपनाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि देशों की क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान और आंतरिक मामलों में दखलअंदाजी का मामला अपनी सहूलियत के हिसाब से तय नहीं हो सकता। उन्होंने यह भी कहा कि किस तरह कनाडा में अलगाववादियों और गैंगस्टरों को संरक्षण दिया जा रहा है। भारत ने निज्जर हत्याकांड को लेकर जस्टिन ट्रूडो के भारत विरोधी वक्तव्य के बाद जो भी कदम उठाए हैं उनसे जस्टिन ट्रूडो के साथ-साथ वहां पल रहे खालिस्तानियों के होश उड़ जाना स्वाभाविक है। क्योंकि इससे पहले भारत ने कभी भी इस तरह अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की थी। आने वाले दिनों में इस विषय पर भारत ऐसे कदम उठा सकता है जो कनाडा को दुनिया के सामने आतंकवाद के सहयोगी के रूप में साबित करते हुए पाकिस्तान के समकक्ष खड़ा कर दे।
-हिमाल चन्द शर्मा