पंजाब में कैसे हो पराली का उचित प्रबंधन
1 min readहर वर्ष अक्टूबर- नवंबर माह में पंजाब से लेकर दिल्ली तक पराली जलाने से होने वाले प्रदूषण पर चिंता व्यक्त की जाती है। सरकार किसानों से पराली न जलाने की अपील करती है लेकिन पराली जलाई जाती रहती है और सरकार समाचार पत्रों या अन्य माध्यमों के द्वारा विज्ञापन देकर मान लेती है कि उसने अपना दायित्व पूर्ण कर लिया है। इस वर्ष भी यही सब किया जा रहा है। हालांकि पिछले दिनों हुई वर्षा से पराली जलाने के कारण हुए वायु प्रदूषण में कमी आई थी लेकिन पराली जलाने की घटनाओं में कमी न आने के कारण वायु प्रदूषण फिर बढ़ गया है।
पराली जलाने से किसानों को रोकने के लिए जो प्रबंध सरकारी स्तर पर किए जाने चाहिए वे कहीं नजर नहीं आते। पराली जलाने की घटनाओं में कमी आने के सरकारी दावों के विपरीत पंजाब में ऐसे मामलों में बढ़ोतरी हुई है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने पराली जलाने से होने वाले वायु प्रदूषण पर चिंता व्यक्त करते हुए पंजाब के मुख्य सचिव और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य सचिव को नोटिस जारी किया है। यह नोटिस एक मीडिया रिपोर्ट के आधार पर जारी किया गया है जिसमें कहा गया है कि पंजाब में पिछले वर्ष की अपेक्षा पराली जलाने की घटनाओं में बढ़ोतरी हुई है।
एनजीटी के अध्यक्ष जस्टिस प्रकाश श्रीवास्तव पर आधारित खंडपीठ ने कहा है कि मीडिया रिपोर्ट के अनुसार अमृतसर, तरनतारन आदि जिलों में पराली जलाने की घटनाओं में पिछले साल के मुकाबले 63 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। खंडपीठ ने कहा है कि इसमें किसानों का पक्ष भी रखा गया है जिसमें उन्होंने कहा है कि वे खुद पराली जलाना नहीं चाहते लेकिन इसके लिए सरकारें कोई विकल्प या वित्तीय सहायता नहीं दे रही है। दूसरी तरफ पंजाब प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड ने भी खंडपीठ को अपनी रिपोर्ट दी है जिसमें बताया गया है कि पराली जलाने की घटनाओं में पिछले वर्ष की अपेक्षा कमी आई है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ओर से पराली जलाने की घटनाओं को रोकने के लिए उठाए गए कदमों के बारे में भी जानकारी दी गई है।
हालांकि पिछले दिनों हुई वर्षा के कारण धान की कटाई बाधित हुई थी और इसी वजह से पराली जलाने के मामलों में भी कमी आई थी। लेकिन अब प्रशासन के सामने चुनौती बढ़ गई है क्योंकि मौसम साफ हो गया है और धूप खिलने के साथ ही धान की कटाई जोर पकड़ने लगी है व किसान पराली जलाने को प्राथमिकता देने लगे हैं। किसानों की मनमानी को देखते हुए प्रदेश सरकार और प्रशासन को कड़े कदम उठाए जाने के बारे में सोचना चाहिए। धान की कटाई शुरू होने से पहले प्रदेश सरकार ने कहा था कि इस वर्ष पराली जलाने की घटनाओं में कमी आएगी। सरकार ने इसके लिए दस हजार कर्मचारियों को भी तैनात किया है लेकिन उसका कोई असर दिखाई नहीं दे रहा है।
पर्यावरण को प्रदूषण मुक्त रखने की जिम्मेदारी सभी की है, ऐसे में पर्यावरण की चिंता किसानों को भी करनी चाहिए। पराली जलाने वाले किसानों को उन किसानों से सीख लेनी चाहिए जो पराली को कुतर कर खेत में मिला देते हैं जिस से जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ जाती है। प्रदेश सरकार को भी किसानों को नसीहत देने या उन पर कानूनी कार्रवाई करने से अधिक पराली के प्रबंधन की तरफ ध्यान देना चाहिए। प्रदेश में ऐसे उद्योगों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए जो अपने उत्पाद तैयार करने के लिए कच्चे माल के रूप में पराली का उपयोग करें। ऐसे उद्योग ब्लॉक स्तर पर लगाए जाने चाहिए। इससे जहां किसानों की आय बढ़ेगी वहीं उद्योग बढ़ने से रोजगार के अवसर भी पैदा होंगे। सिर्फ किसानों के विरुद्ध सख्त कदम उठाने से समस्या का समाधान नहीं हो सकेगा। -हिमाल चन्द शर्मा