March 12, 2025

इमिग्रेशन और फॉरनर्स बिल 2025 और डे कैंसर केयर सेंटर पर संसद में हुई चर्चा

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जानें आम नागरिकों के लिए ये बिल कैसे है खास

नई दिल्ली: संसद का बजट सत्र का दूसरा चरण चल रहा है। बजट सत्र के दूसरे चरण के दूसरे दिन जबरदस्त तरीके से सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच वार-पलटवार का दौर देखा गया। हालांकि कुछ मुद्दों पर चर्चा भी हुई। साथ ही साथ सवाल जवाब ही हुए। इसी कड़ी में संसद में आज इमीग्रेशन और फॉरेनर्स बिल 2025 पेश किया गया। इसके अलावा डे कैंसर केयर सेंटर की भी सरकार की ओर से बात की गई है। आइए, दोनों विषयों को समझने की कोशिश करते हैं कि इससे आम जनता पर क्या असर पड़ सकता है?

इमिग्रेशन और फॉरनर्स बिल 2025

सरकार ने आज इमिग्रेशन और फॉरनर्स बिल 2025 को आज लोकसभा में पेश किया। इसका उद्देश्य आव्रजन कानूनों को सरल बनाना, राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करना और उल्लंघनों के लिए कठोर दंड लगाना है। चार अधिनियमों-पासपोर्ट अधिनियम 1920, विदेशियों का पंजीकरण अधिनियम 1939, विदेशी अधिनियम 1946 और आप्रवास अधिनियम 2000 को निरस्त कर एक व्यापक अधिनियम बनाया जा रहा है। विपक्ष के कुछ सदस्यों के विरोध के बीच गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने इसे पेश किया।

आम जनता से कैसे जुड़ा ये बिल

राष्ट्र हर नागरिक के लिए एक भावनात्मक मुद्दा होता है। हर नागरिक चाहता है कि राष्ट्र सुरक्षित रहे। हालांकि हमने देखा है कि कैसे दूसरे देशों से आने वाले लोग हमारे देश के अलग-अलग हिस्सों में पाए जाते हैं जबकि उनके पास हमारे देश का कोई ठोस दस्तावेज नहीं होता है। ऐसे ही लोगों को नियंत्रित करने के लिए यह बिल लाया गया है। यह बिल देश में दाखिल होने वाले और यहां से बाहर जाने वाले व्यक्तियों के संबंध में पासपोर्ट या बाकी यात्रा दस्तावेजों की जरूरतों और विदेशों से संबंधित मामलों को रेगुलेट करने की शक्तियां केंद्र सरकार को देगा।

यह विधेयक स्पष्ट रूप से भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा, संप्रभुता या अखंडता के लिए खतरा माने जाने वाले किसी भी विदेशी नागरिक के प्रवेश या निवास पर पाबंदी लगाता है। इस विधायक के जरिए कानूनी स्थिति साबित करने की जिम्मेदारी राज्य के बजाय व्यक्ति पर डाल दी गई है। इसके अलावा नियम तोड़ने पर कड़ी सजा भी हो सकती है। हालांकि विपक्ष इस बिल को पूरी तरीके से मूलभूत अधिकारों का हनन बता रहा है। इसका कारण यह है कि अगर कोई व्यक्ति जायज काम से भी भारत आ रहा है तो उसे तमाम जानकारी मुहैया करानी होगी। मान के चलिए की अगर कोई विदेशी नागरिक अस्पताल में भर्ती होने के लिए भारत आ रहा है तो उसका पुरा ब्योरा मांगा जा सकता है। कांग्रेस का ढावा है कि यह मेडिकल एथिक्स के खिलाफ है। हालांकि कानून तो आ गया। संसद में पास भी करा लिया जाएगा। लेकिन यह अमल में कितना लाया जाता है, देखने वाली बात होगी।

डे कैंसर केयर सेंटर

स्वास्थ्य मंत्री जे पी नड्डा ने मंगलवार को राज्यसभा में कहा कि सरकार का लक्ष्य 2025-26 तक देश में 200 ‘डे कैंसर केयर सेंटर’ खोलने का है, जहां मरीजों को बुनियादी सुविधाएं मुहैया कराई जाएंगी और अगले तीन सालों में सभी जिलों में ऐसे केंद्र स्थापित किए जाएंगे। उन्होंने कहा कि 2025-26 में हम 200 ‘डे कैंसर केयर सेंटर’ खोलने जा रहे हैं और अगले तीन वर्षों में देश के सभी जिलों में ऐसे सेंटर खोले जाएंगे।’’ उन्होंने यह भी घोषणा की कि 22 एम्स में पूर्ण ऑन्कोलॉजी विभाग हैं और सभी केंद्रीय अस्पतालों में कैंसर के उपचार के लिए ऑन्कोलॉजी विभाग हैं।

आम जनता के लिए मददगार कैसे

एक नए अध्ययन ने भारत में समग्र स्वास्थ्य में गिरावट की एक चिंताजनक तस्वीर सामने लाई है। एक रिपोर्ट में पाया गया कि देश भर में कैंसर और अन्य गैर-संचारी रोगों के मामलों में बेतहाशा वृद्धि ने अब इसे “दुनिया की कैंसर राजधानी” बना दिया है। हर साल लाखों नए मामले सामने आते हैं और इनमें से कई लोगों अपनी जान गवानी पड़ती है। देश में कैंसर का खतरनाक स्तर पर जाने का बड़ा कारण जागरूकता की कमी और शुरुआती इलाज में लापरवाही को माना जा सकता है। इसके अलावा कैंसर का इलाज बहुत महंगा होता है। 30 से 40% लोग ऐसे भी होते हैं जो अपना इलाज ठीक से नहीं करा पाते। ऐसे लोगों के लिए डे कैंसर केयर सेंटर काफी मददगार साबित हो सकता है।

सरकार राज्यों को तकनीकी और वित्तीय सहायता देकर स्वास्थ्य सेवा को किफायती, सुलभ और न्यायसंगत बनाने की कोशिश कर रही है। इस कार्यक्रम के तहत स्क्रीनिंग के 30 दिनों के भीतर कैंसर का इलाज शुरू हो सकता है। यह बड़ी बात है। झज्जर एम्स में देश का सबसे बड़ा 700 बिस्तरों वाला कैंसर सेंटर है। कैंसर केयर सेंटर में मरीजों की अच्छे से देखभाल हो सकती है। विशेषज्ञ आपके स्वास्थ्य की जानकारी पल-पल बताते रहेंगे। क्या करना है, क्या नहीं करना है, इस पर भी आपको अपडेट मिलता रहेगा।हालांकि यह बात भी सही है कि हमारे देश में इस तरह के कार्यक्रमों की घोषणा तो सरकार द्वारा कर दी जाती है। लेकिन जमीन पर इसे पहुंचने में कई साल लग जाते हैं। कई बार तो ऐसा भी होता है कि इस तरह की सुविधा होने के बावजूद जिसको सबसे ज्यादा जरूरत है, उसे ही यह नहीं मिल पाता है। सरकार को इस पर सबसे ज्यादा ध्यान देने की जरूरत होगी। बाकी, देखना होगा कि सरकार का यह कदम आम लोगों के लिए कितना मददगार होता है। लेकिन सरकारी अस्पतालों का कई जगहों पर जो हाल है, उससे सिस्टम पर संदेह बरकरार रहता है।