चामुंडा देवी- आसुरी शक्तियों का संहार कर भयमुक्त करती है देवी
1 min readयहां श्रद्धालु अपने पूर्वजों की शांति के लिए पूजा, प्रार्थना और अनुष्ठान भी करते हैं
हिमाचल प्रदेश को देवभूमि यानी देवताओं के घर के रूप में जाना व माना जाता है। समूचे हिमाचल प्रदेश में 2000 से अधिक मंदिर है। इन्हीं मंदिरों में एक मंदिर चामुंडा देवी है जो कि हिमाचल प्रदेश के जिला कांगड़ा में स्थित है। माता सती को समर्पित 51 प्रमुख शक्तिपीठों में चामुंडा देवी भी एक शक्तिपीठ है। माना जाता है कि इस स्थान पर देवी सती के चरणों का एक भाग गिरा था। लेकिन अधिकतर मान्यताओं और पुराणों में माता चामुंडा देवी के इस मंदिर को शक्तिपीठ के रूप में मान्यता नहीं है लेकिन स्थानीय और क्षेत्रीय स्तर पर यह मंदिर शक्तिपीठ के रूप में ही पूजा जाता है। कुछ धार्मिक विद्वानों का यह मानना है कि यह एक सिद्ध पीठ मंदिर है व किसी सिद्ध पीठ की मान्यता भी शक्तिपीठ स्थलों के समान ही होती है।
भगवान शिव और माता शक्ति का निवास स्थल
चामुंडा देवी का मंदिर हिमाचल प्रदेश के जिला कांगड़ा में बाण गंगा नदी के तट पर पडर नामक एक गांव में स्थित है। उत्तर भारत की नौ देवियों की यात्रा में चामुंडा देवी का दूसरा स्थान है। असुर चंड- मुंड का संहार करने के कारण माता का नाम चामुंडा पड़ा। स्थानीय आस्था के अनुसार देवी चामुंडा का यह मंदिर भगवान शिव और माता शक्ति का निवास स्थल है जहां वे अपने विश्व भ्रमण के दौरान विश्राम करते हैं। इसके अलावा भगवान शिव के प्रमुख गण नंदी के नाम पर चामुंडा नंदीकेश्वर धाम के रूप में भी इस स्थान की महत्ता है। पुराणों में दर्ज कथाओं के अनुसार चामुंडा नंदीकेश्वर धाम भगवान शिव और माता शक्ति का निवास स्थान है।
प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर यह पवित्र स्थल
एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार चंड और मुंड नाम के राक्षसों का अंत करने के बाद देवी के उस रौद्र रूप को सभी देवताओं की ओर से चामुंडा के रूप में पहचान मिली थी। इसलिए इस स्थान का महत्व धार्मिक रूप से बढ़ जाता है। चामुंडा देवी का यह मंदिर हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा ही नहीं बल्कि संपूर्ण देश के प्रतिष्ठित धार्मिक और आध्यात्मिक केंद्रों में से एक है। चामुंडा देवी मंदिर समुद्र तल से करीब 3280 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर यह पवित्र स्थल पर्वतीय तीर्थ करने वालों के साथ-साथ पर्यटकों को भी काफी लुभाता है। मंदिर के आसपास की सुंदरता जंगल और नदियां श्रद्धालुओं को जहां आध्यात्मिक ऊर्जा प्रदान करती है वही यहां का वातावरण पर्यटकों को भी खूब लुभाता है। यहां देश-विदेश से पहुंचे श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक आनंद मिलता है। यही कारण है कि मंदिर परिसर में अनेक स्थानों पर श्रद्धालुओं को ध्यान की मुद्रा में देखा जा सकता है। यहां आने वाले श्रद्धालु अपने पूर्वजों की शांति के लिए पूजा, प्रार्थना और अनुष्ठान करते भी देखे जा सकते हैं।
चामुंडा देवी मंदिर के मुख्य द्वार के पास ही भगवान भैरवनाथ, भगवान श्री राम व राम भक्त हनुमान जी की प्रतिमाओं के दर्शन हो जाते हैं। मंदिर के पिछले हिस्से में एक पवित्र गुफा भी है जिसके अंदर भगवान शिव के प्राकृतिक शिवलिंग के दर्शन होते हैं। मंदिर की दीवारों पर महाभारत और रामायण के विभिन्न दृश्यों के चित्रों को चित्रित किया गया है। यहां वैसे तो हर दिन ही श्रद्धालुओं की भीड़ देखी जाती है लेकिन नवरात्रों के अवसर पर यहां अधिक धूमधाम रहती है। मंदिर में अखंड सप्त चंडी का पाठ किया जाता है व विशेष हवन यज्ञ होते हैं। लगातार नौ दिनों तक जागरण किया जाता है व सांस्कृतिक मेले का भी आयोजन होता है।
चामुंडा नाम पड़ने के पीछे की कहानी
माता का नाम चामुंडा पड़ने के पीछे दुर्गा सप्तशती में एक कथा वर्णित है। हजारों वर्षों पूर्व धरती पर शुंभ और निशुंभ नाम के दो दैत्यों का राज था। उनके द्वारा देवताओं को बार-बार युद्ध में परास्त किया गया जिसके फलस्वरूप देवताओं ने भगवती दुर्गा की आराधना की व उनकी आराधना से प्रसन्न होकर देवी दुर्गा ने उन्हें वरदान दिया कि वे अवश्य ही इन दोनों दैत्यों से उनकी रक्षा करेंगी। इसके पश्चात देवी दुर्गा ने दो रूप धारण किए। एक महाकाली और दूसरा माता अंबे का। महाकाली संसार में विचरने लगी तो माता अंबे हिमालय में रहने लगी। तभी वहां चंड और मुंड नामक दो दैत्य पहुंचे। वे देवी अंबे के सुंदर रूप से मोहित हो गए व जाकर दैत्यराज शुंभ से बोले कि पृथ्वी पर एक अति सुंदर नारी है जो कि आपके पास होनी चाहिए।
यह सुनकर शुंभ ने अपना एक दूत माता अंबे के पास भेजा और उस दूत से कहा कि तुम उस सुंदरी को बताओ कि शुंभ तीनों लोकों के राजा है व वे तुम्हें अपनी रानी बनाना चाहते हैं। दूत माता अंबे के पास गया और शुंभ द्वारा कहे गए वचन माता को सुनाए। माता ने उसे दूत को कहा कि वह जानती है कि शुंभ बलशाली है परंतु मैं एक प्रण ले चुकी हूं कि जो व्यक्ति मुझे युद्ध में हरा देगा मैं उसी से विवाह करूंगी। दूत ने यह सारी बातें शुंभ को बताई। वह माता के वचन सुन क्रोधित हो गया। उसने अपने सेनापति ध्रुवलोचन को सेना लेकर माता के पास उन्हें लाने भेजा। माता और सेनापति के बीच हुए युद्ध में अनेकों असुरों का संहार हो गया।
अपनी सेना का संहार सुनकर शुंभ को क्रोध आया और चण्ड और मुंड नामक दो असुरों को रक्तबीज के साथ भेजा। चण्ड और मुंड माता के पास गए और उन्हें अपने साथ चलने को कहा। देवी के मना करने पर उन्होंने देवी पर प्रहार किया तब देवी ने अपना महाकाली रूप धारण किया और असुरों के शीश काटकर मुंडों की माला धारण कर आसुरी सेना का संहार कर दिया। फिर जब महाकाली माता अंबे के पास लौटी तो उन्होंने कहा कि आज से तुम्हारा नाम चामुंडा होगा और तुम्हारी ख्याति समूचे ब्रह्माण्ड में होगी।
यह भी पढ़ें चिंताओं को दूर करने वाली देवी है मां चिंतपूर्णी
कैसे पहुंचें चामुंडा देवी मंदिर
हवाई मार्ग हवाई मार्ग से आने वाले यात्रियों के लिए निकटवर्ती हवाई अड्डा गगल है जो यहां से लगभग 28 किलोमीटर की दूरी पर है।
रेल मार्ग रेल मार्ग से यहां पहुंचने के लिए समीपवर्ती मिरांडा रेलवे स्टेशन है जिस पर छोटी लाइन पर चलने वाली रेलगाड़ी द्वारा यहां तक पहुंचा जा सकता है। मिरांडा रेलवे स्टेशन चामुंडा देवी मंदिर से लगभग 30 किलोमीटर की दूरी पर है
यह भी पढ़ें माता नैना देवी मंदिर- भक्तों की श्रद्धा का केंद्र है यह शक्तिपीठ
अन्य नजदीकी प्रसिद्ध स्थल चामुंडा देवी मंदिर धर्मशाला से 18 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है जबकि यहां से पालमपुर लगभग 25 किलोमीटर दूर है। प्रसिद्ध पर्यटन स्थल मैकलोडगंज यहां से 25 किलोमीटर की दूरी पर है जबकि कांगड़ा 26 किलोमीटर व ज्वाला जी मंदिर 55 किलोमीटर दूरी पर हैं।
यह भी पढ़ें मां ज्वाला जी- ज्योति रूप में विराजमान है मां भगवती