विपक्षी गठबंधन के गुब्बारे से निकलती हवा
1 min read
भारतीय जनता पार्टी को आमने-सामने की टक्कर देने के लिए विपक्षी दलों द्वारा आईएनडीआईए नाम से एक गठबंधन की घोषणा तो कर दी गई है लेकिन धरातल पर कहीं ऐसा नजर नहीं आ रहा है जिससे लगे कि विपक्षी दल गठबंधन का रूप लेकर भाजपा को टक्कर देने की तैयारी में है। इसके विपरीत ऐसा नजर आ रहा है कि उक्त गठबंधन के गुब्बारे की हवा धीरे-धीरे निकलती जा रही है। चाहे समाजवादी पार्टी हो या फिर जदयू, टीएमसी, आम आदमी पार्टी सहित अन्य विपक्षी दल हों, गठबंधन के नाम पर कोई भी अपनी थोड़ी सी जमीन कांग्रेस या अन्य घटक दलों को देने के लिए सहमत नहीं है।
यही हालत कांग्रेस की भी है। कांग्रेस भी जानती है कि सभी अन्य विपक्षी दल गठबंधन के नाम पर उसी का शिकार करने की फिराक में है। ऐसे में कांग्रेस भी आने वाले विधानसभा चुनावों में गठबंधन के नाम को परे रखते हुए अपनी रणनीति बनाकर चल रही है। अन्य विपक्षी दल कांग्रेस पर दबाव बनाने की लगातार कोशिशें कर रहे हैं व अलग-अलग क्षेत्रीय दल समय-समय पर कांग्रेस पर प्रहार करने से परहेज नहीं कर रहे हैं।
पिछले दिनों समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने कांग्रेस और भाजपा को एक जैसा बता दिया। वे इस बात से नाराज़ हैं कि कांग्रेस पार्टी मध्य प्रदेश में समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ने को तैयार नहीं है। अखिलेश यादव पहले भी कांग्रेस के रवैए को लेकर अपनी नाराजगी प्रकट करते रहे हैं। अखिलेश यादव ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि अब लोकसभा चुनाव में ही यह देखा जाएगा कि मिलकर चुनाव लड़ना संभव है या नहीं। वह यह भी कह चुके हैं कि उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनावों के दौरान मिलकर चुनाव लड़ने पर अगर समझौता होता है तो समाजवादी पार्टी 65 सीटों पर चुनाव लड़ेगी और यदि समझौता नहीं होता है तो पार्टी सभी 80 सीटों पर लड़ेंगी।
हालांकि कांग्रेस आईएनडीआईए की मुख्य घटक पार्टी है लेकिन उसके रवैए से यह स्पष्ट होता है कि वह पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में इस गठबंधन के घटक दलों को कोई भाव देने को तैयार नहीं है। कांग्रेस की रणनीति है कि यदि वह राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना, और मिजोरम में बेहतर प्रदर्शन करती है तो लोकसभा चुनाव में आईएनडीआईए के घटकों से अपनी शर्तों पर समझौता करने में सक्षम हो जाएगी। आईएनडीआईए के कई घटक यह चाह रहे हैं कि कांग्रेस लोकसभा चुनाव कम से कम सीटों पर लड़े। कई घटक तो यह सुझाव दे चुके हैं कि कांग्रेस को उन दो- ढाई सौ सीटों पर ही चुनाव लड़ना चाहिए जहां उसका भाजपा से सीधा मुकाबला है। इसी तरह कुछ घटक ऐसे भी हैं जो लोकसभा चुनावों में अपने प्रभाव वाले राज्यों में कांग्रेस को कोई रियायत देना नहीं चाहते या देने को तैयार नहीं है।
पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस और आईएनडीआईए के घटकों में किसी तालमेल के आसार इसलिए भी नहीं है क्योंकि आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस से बिना कोई बात किए मध्य प्रदेश, राजस्थान, और छत्तीसगढ़ में अपने प्रत्याशी उतार दिए हैं। आम आदमी पार्टी और कांग्रेस में इसे लेकर भी कोई सहमति कायम होती नहीं दिखती है कि दिल्ली और पंजाब में कौन कितनी सीटों पर लोकसभा चुनाव लड़ेगा।
कांग्रेस के रवैए से साफ है कि उसे घटक दलों का यह सुझाव रास नहीं आ रहा है कि उसे लोकसभा चुनाव दो, ढाई सौ सीटों पर ही लड़ना चाहिए। इसलिए वह विधानसभा चुनावों में घटक दलों से कोई तालमेल करने को तैयार नहीं है। यदि कांग्रेस विधानसभा चुनावों में घटक दलों से तालमेल करती है तो उसे अपनी बची खुची राजनीतिक जमीन गंवानी पड़ सकती है। कांग्रेस का आधार भी इसीलिए सिकुड़ा है क्योंकि उसने क्षेत्रीय दलों का सहयोग हासिल करने के चक्कर में अपनी राजनीतिक जमीन उनके हवाले कर दी थी। आज कांग्रेस उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड जैसे राज्यों में कमजोर है तो इसकी वजह है कि इन राज्यों में असर रखने वाले क्षेत्रीय दलों ने उसके साथ खड़े होने के बहाने उसकी राजनीतिक जमीन पर कब्जा कर लिया है।
उचित है कि आईएनडीआईए के घटक अपने-अपने राज्यों में कहीं अधिक सशक्त है लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर वे कांग्रेस की बराबरी नहीं कर सकते।आईएनडीआईए को मजबूती तभी मिलेगी जब आगामी लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को अधिक से अधिक सीटें मिलेगी। यदि कांग्रेस और आईएनडीआईए के घटक यह चाहते हैं कि वे लोकसभा चुनाव में भाजपा का मुकाबला करते हुए दिखें तो उन्हें एक दूसरे पर विश्वास जताना होगा। आईएनडीआईए अभी तक यह भी तय नहीं कर सका है कि वह किन मुद्दों पर भाजपा का मुकाबला करेगा। स्पष्ट है कि आईएनडीआईए नाम से घोषित यह एक दिशाहीन गठबंधन है जिसमें सभी क्षेत्रीय दलों के स्वार्थ निहितार्थ है। इस तरह के गठबंधन का अधिक समय तक बने रहना संभव नहीं है। जैसे-जैसे पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव निकट आते जाएंगे इस गठबंधन की हकीकत भी सबके सामने आती जाएगी।