आखिर कौन सी उपलब्धि पर खुशियां मना रही है कांग्रेस पार्टी?

लोकसभा के लिए संपन्न हुए आम चुनावों में भाजपा गठबंधन को बहुमत मिला है, परिणाम स्वरूप एनडीए के नेता नरेंद्र मोदी ने तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार अपने कामकाज में जुट गई है दूसरी तरफ कांग्रेस सहित विपक्षी गठबंधन खुशियां मनाने में जुटा हुआ है। विपक्ष इस बात से खुश है कि भाजपा के नेतृत्व में एनडीए गठबंधन चुनावों में 400 सीटें जीतने का लक्ष्य हासिल नहीं कर सका है।
अगर विपक्षी गठबंधन में शामिल छोटे या क्षेत्रीय दल इन चुनाव परिणामों पर खुशी जाहिर करें तो समझ आता है लेकिन देश पर 60 साल से अधिक शासन करने वाली कांग्रेस पार्टी का शीर्ष नेतृत्व लगातार तीन आम चुनावों में 100 का आंकड़ा पार न कर पाने पर भी अपनी पीठ थपथपा रहा है तो हैरानी होती है। इन चुनावों में जहां भारतीय जनता पार्टी को लोकसभा की 240 सीटों पर सफलता हासिल हुई है वहीं कांग्रेस पार्टी 100 का आंकड़ा पार न करते हुए 99 पर सिमट गई है। कांग्रेस का उत्साह शायद इसलिए है क्योंकि 2019 के लोकसभा चुनावों में उसे मात्र 52 सीटें हासिल हुई थी। या फिर इसलिए कि इस बार उसे विपक्ष के नेता का पद हासिल हो जाएगा।
लगातार तीसरी बार केंद्र की सत्ता मिलने के बावजूद भारतीय जनता पार्टी के नेताओं में वह उत्साह नजर नहीं आया जो सत्ता मिलने पर नजर आता है। यह शायद इसलिए कि उन्हें सत्ता मिलने से अधिक अपना लक्ष्य हासिल न कर पाने की कहीं न कहीं कसक है। जबकि सत्ता हासिल करना ही चुनावों का मुख्य लक्ष्य होता है जो भारतीय जनता पार्टी या एनडीए ने कर लिया है। इन चुनावों में एनडीए को सत्ता हासिल करने के निर्धारित लक्ष्य 272 से कहीं अधिक 292 सीटें मिली है जबकि विपक्षी इंडी गठबंधन मात्र 232 सीटें हासिल करने में सफल रहा है। हैरानी की बात है कि अब सरकार का गठन हो जाने के उपरांत इंडी गठबंधन इस बात के कयास लगाकर ख़ुशी मना रहा है कि कभी न कभी एनडीए के घटक दल गठबंधन से बाहर आ जाएंगे व सरकार गिर जाएगी। जबकि कोई ऐसा राजनीतिक कारण नजर नहीं आता कि जदयू व तेलुगू देशम पार्टी एनडीए से बाहर आने की सोचें। इसके अलावा इन दलों को राजनीतिक मजबूरियों के कारण भी एनडीए में ही बने रहना होगा।
कांग्रेस शायद आम जनता में यह भ्रम फैलाना चाहती है कि वह 99 सीटें पाकर भी जीत गई है क्योंकि उसने भाजपा का 400 पार का लक्ष्य हासिल नहीं होने दिया। या फिर कभी एनडीए सरकार गिरेगी तो वह सत्ता हासिल करने में सफल हो जाएगी। लेकिन ऐसा होना भी संभव नहीं है। अगर जदयू व तेलुगु देशम पार्टी एनडीए से बाहर भी चले जाते हैं तो भी यह सरकार बनी रहेगी क्योंकि कितने ही ऐसे दल है जिनकी एक या दो सीटें हैं व वे एनडीए या इंडी अलायंस में शामिल नहीं हैं। वे भी सरकार का साथ दे सकते हैं व शायद भाजपा नेतृत्व ने इसका हल भी निकाल लिया है। दूसरे जदयू व तेलुगू देशम पार्टी इंडी गठबंधन में शामिल हो भी जाते हैं तो भी यह गठबंधन 272 के आंकड़े को छूने से काफी पीछे रह जाता है।
ऐसे में यह कहना उचित होगा कि कांग्रेस व इंडी गठबंधन के कुछ नेता जो खुशियां प्रकट कर रहे हैं वह सिर्फ लोगों को भ्रमित करने के लिए है या फिर स्वयं को संतुष्टि देने के लिए यह सब किया जा रहा है। हैरानी की बात है कि जिन क्षेत्रीय दलों ने उत्तर प्रदेश, बिहार, दिल्ली सहित कई राज्यों में कांग्रेस की राजनीतिक जमीन पर कब्जा किया है आज कांग्रेस उन्हीं राजनीतिक दलों के सहारे राजनीति करने के लिए मजबूर हो चुकी है। बड़ी बात यह है कि चंद सीटें बढ़ जाने से कांग्रेस अपने आप को विजेता समझने लगी है व राजतिलक की तैयारी करती नजर आ रही है। जबकि बीजेपी इन चुनाव परिणाम से सबक लेते हुए 2029 के लोकसभा चुनावों की तैयारी में जुट गई है।