आखिर संविधान को किस से है खतरा?
1 min read
विपक्ष के कुछ सांसदों द्वारा संविधान की प्रति हाथ में लेकर शपथ ग्रहण करना हैरानी जनक है। शायद यह सांसद अपने इस आचरण द्वारा कहना चाहते थे कि संविधान खतरे में है व वे इसकी रक्षा करेंगे। इन सांसदों को एक सांसद द्वारा शपथ ग्रहण करते समय फिलिस्तीन की जय कहना अनुचित नहीं लगा व इस नारे से उन्हें संविधान खतरे में नजर नहीं आया। लेकिन जब देश की जनता ने तीसरी बार नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए को सरकार बनाने के लिए चुना है तो विपक्ष को संविधान खतरे में नजर आ रहा है।
अगर देश की जनता ने विपक्षी गठबंधन को सत्ता सौंपने के योग्य नहीं समझा तो इसका मतलब यह कैसे हो गया कि संविधान खतरे में है? देश की 140 करोड़ जनता द्वारा चुनी हुई सरकार को विपक्ष द्वारा तानाशाही सरकार या संविधान के अनुरूप चुने हुए प्रधानमंत्री को तानाशाह कहना संविधान के साथ-साथ जनादेश का अपमान नहीं है? विपक्षी सांसदों द्वारा संसद की कार्रवाई को चलने न देना व अभद्र व्यवहार करना संविधान का अपमान नहीं है? अगर विपक्षी सांसद यह सब संविधान की भावना के अनुरूप कर रहे हैं तो संविधान में अवश्य ही ऐसे सुधार की आवश्यकता है जिससे सांसदों के लिए संसद में एक आचरण निश्चित हो सके।
इन लोक सभा चुनावों में कांग्रेस को पिछली बार के मुकाबले लगभग दोगुनी सीटें मिली है, इसलिए उसका उत्साहित होना समझ में आता है। लेकिन विपक्षी दलों द्वारा आखिर यह माहौल क्यों बनाया जा रहा है कि लोकसभा में विपक्षी गठबंधन की जीत और एनडीए की हार हुई है। अपने संख्या बल में वृद्धि के चलते कांग्रेस का मनोबल बढ़ा है लेकिन यह जताना उसकी एक राजनीतिक भूल है कि उसने भाजपा को मात दे दी है। यह माहौल बनाने में वह राहुल गांधी भी जुटे हुए हैं जो लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष बन गए हैं।
राहुल गांधी यह मानकर चल रहे हैं कि वह प्रधानमंत्री मोदी के प्रति जितना अधिक हमलावर होंगे और राजनीतिक मर्यादा का उल्लंघन करते हुए आक्रामक बने रहेंगे तो इससे उनकी लोकप्रियता और बढ़ेगी। यह ठीक है कि कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों ने चुनावों के दौरान एक झूठा नरेटिव गढ़ा था कि यदि एनडीए को 400 से अधिक सीटें मिल गई तो भाजपा संविधान बदल देगी, इससे उन्हें राजनीतिक लाभ मिला। लेकिन झूठ की राजनीति लंबे समय तक नहीं चलती। कांग्रेस की झूठ की राजनीति की तब पोल खुल गई जब कांग्रेस संविधान बचाने का दावा करने के साथ-साथ ही संसद में आपातकाल के स्मरण पर अपनी आपत्ति जताने लगी।
संविधान तब खतरे में पड़ा था जब 1975 में पूर्व प्रधानमंत्री स्व. श्रीमती इंदिरा गांधी ने अपनी संसद सदस्यता बचाने के लिए देश पर आपातकाल थोप दिया था। आपातकाल के दौरान विपक्ष और मीडिया का जमकर उत्पीड़न किया गया। इससे भी बुरी बात यह हुई थी कि संविधान की प्रस्तावना को बदल दिया गया था। कांग्रेस ने लोकसभा अध्यक्ष की ओर से आपातकाल के खिलाफ लाए गए प्रस्ताव पर हंगामा किया और फिर राष्ट्रपति के अभिभाषण में आपातकाल की चर्चा का भी विरोध किया।
स्पष्ट है की संविधान को खतरा कुछ विपक्षी दलों या नेताओं से है जिनका उद्देश्य विपक्ष में बैठकर देश की समस्याओं या योजनाओं पर चर्चा करना नहीं बल्कि संसद की कार्रवाई में व्यवधान उत्पन्न करना है। असल में चुनावों के समय मतदाताओं को बड़े-बड़े झूठे वादे कर ललचाने वाले राजनीतिक दलों से संविधान को खतरा है। मोदी सरकार अपने तीसरे कार्यकाल में राजनीतिक दलों द्वारा चुनावों के दौरान मतदाताओं को ललचाने या भरमाने से रोकने बारे सख्त कानून बनाए तो भविष्य में संविधान को कोई खतरा नहीं रहेगा।