चंडीगढ़ पीजीआई में 1.14 करोड़ का घोटाला
सीबीआई ने 6 कर्मियों समेत 8 पर एफआईआर दर्ज की
चंडीगढ़, देश के प्रतिष्ठित स्वास्थ्य संस्थान पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (पीजीआई) चंडीगढ़ में गरीब और जरूरतमंद मरीजों को मिलने वाली सरकारी ग्रांट में 1.14 करोड़ रुपये के बड़े घोटाले का खुलासा हुआ है। इस मामले में केंद्रीय जांच ब्यूरो ने पीजीआई के 6 कर्मचारियों और 2 निजी व्यक्तियों समेत कुल 8 आरोपियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है। सीबीआई ने आरोपियों पर आईपीसी की धारा 406, 409, 420, 471, 120-बी और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज किया है।
फोटोकॉपी दुकान से हो रहा था पूरा ऑपरेशन
सीबीआई जांच में सामने आया है कि यह पूरा घोटाला पीजीआई की गोल मार्केट स्थित एक फोटोकॉपी दुकान से संचालित किया जा रहा था। दुकान मालिक का पीजीआई की प्राइवेट ग्रांट सेल में कार्यरत कर्मचारियों से लगातार संपर्क था। इन्हीं के माध्यम से फर्जी बैंक खाते जुटाए गए, जिनमें मरीजों को मिलने वाली ग्रांट की रकम ट्रांसफर की जाती थी। साथ ही मरीजों के नाम पर मिलने वाली महंगी दवाएं अवैध रूप से बाजार में बेच दी जाती थीं।
आंतरिक जांच के बाद सामने आया मामला
मामले की गंभीरता को देखते हुए पीजीआई प्रशासन ने स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ एंड कम्युनिटी मेडिसन के प्रोफेसर एवं अध्यक्ष डॉ. अरुण अग्रवाल की अध्यक्षता में एक आंतरिक जांच समिति गठित की थी। इसी समिति की रिपोर्ट के आधार पर आगे की कार्रवाई करते हुए मामला सीबीआई को सौंपा गया।
सीबीआई ने फोटोकॉपी दुकान के मालिक दुर्लभ कुमार और उसके पार्टनर साहिल सूद को भी आरोपी बनाया है। इसके अलावा जिन पीजीआई कर्मियों के खिलाफ केस दर्ज किया गया है, उनमें शामिल हैं— धर्मचंद (रिटायर्ड जूनियर एडमिनिस्ट्रेटिव असिस्टेंट), सुनील कुमार (मेडिकल रिकॉर्ड क्लर्क), प्रदीप सिंह (लोअर डिवीजन क्लर्क), चेतन गुप्ता, नेहा (हॉस्पिटल अटेंडेंट), गगनप्रीत सिंह (प्राइवेट ग्रांट सेल कर्मचारी)।
सीबीआई ने पीजीआई, संबंधित विभागों और विभिन्न बैंकों से रिकॉर्ड जुटाकर जांच की। जांच में पीजीआई की प्राइवेट ग्रांट सेल में गंभीर वित्तीय अनियमितताएं सामने आईं। यह सेल स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष, राष्ट्रीय आरोग्य निधि, हंस कल्चर सोसाइटी सहित अन्य सरकारी व गैर-सरकारी संस्थाओं से मिलने वाली ग्रांट का प्रबंधन करती है, जिसके माध्यम से गरीब मरीजों को आर्थिक सहायता और दवाएं उपलब्ध कराई जाती हैं।
घोटाले का खुलासा तब हुआ जब लाभार्थी मरीज कमलेश देवी (फाइल नंबर 18796) के पति ढाई लाख रुपये की स्वीकृत ग्रांट से दवा लेने प्राइवेट ग्रांट सेल पहुंचे। वहां उन्हें बताया गया कि फाइल नष्ट कर दी गई है और डिजिटल रिकॉर्ड भी डिलीट है। जांच में सामने आया कि 22,01,839 रुपये आरटीजीएस के जरिए निवास यादव नामक निजी व्यक्ति के खाते में ट्रांसफर कर दिए गए थे, जिसका मरीज से कोई संबंध नहीं था। इसके बाद पीजीआई प्रशासन ने विस्तृत जांच करवाई, जिसमें और भी मामले सामने आए। एक अन्य मरीज अरविंद कुमार (फाइल नंबर 20404) की ग्रांट राशि में से 90 हजार रुपये हॉस्पिटल अटेंडेंट नेहा के खाते में ट्रांसफर किए गए थे।
जांच समिति को 11 ऐसे मैडेट फॉर्म मिले, जिनमें दर्ज लोग न तो मरीज थे और न ही उनके परिजन। इन लोगों को मरीज का रिश्तेदार बताकर 19 लाख 759 रुपये उनके निजी बैंक खातों में ट्रांसफर किए गए।
इतना ही नहीं, दुर्लभ बीमारियों से पीड़ित पांच मरीजों के इलाज के लिए राष्ट्रीय आरोग्य निधि और अन्य संस्थाओं से मिले 61.75 लाख रुपये में से 38.94 लाख रुपये बिना किसी डॉक्टर की पर्ची के सीधे दवा विक्रेताओं के खातों में भेज दिए गए। इन पांच मरीजों में से दो की पहले ही मृत्यु हो चुकी थी।
2017 से अक्टूबर 2021 तक के रिकॉर्ड की जांच में 70 मामलों में वित्तीय गड़बड़ियां सामने आईं। इनमें 17 मामलों में दवा सप्लायरों के असली बिलों से छेड़छाड़ कर दोहरा भुगतान लिया गया, जबकि 37 मरीजों की फाइलें रिकॉर्ड से पूरी तरह गायब पाई गईं।
सीबीआई इस घोटाले से जुड़े अन्य लोगों की भूमिका की भी जांच कर रही है। साथ ही एचएलएल लाइफ केयर, आर. कुमार मेडिकोस, कुमार एंड कंपनी और मारुति मेडिकोस की भूमिका की भी पड़ताल की जा रही है, हालांकि फिलहाल इन कंपनियों को आरोपी नहीं बनाया गया है।
