बिहार में 65 लाख मतदाता हुए हैं ‘लापता’?
जानें क्यों सूची से हटाए जा रहे इतने नाम
पटना, बिहार में एक विवादास्पद मतदाता सत्यापन अभियान के पहले चरण के पूरा होने के बाद, राज्य की मतदाता सूची से लगभग 65 लाख नाम हटाए जा सकते हैं। यह संख्या राज्य के मौजूदा कुल मतदाताओं का लगभग 9 प्रतिशत है। इस अभियान ने पूरे देश में विरोध प्रदर्शनों को जन्म दिया है और इसे सुप्रीम कोर्ट में भी चुनौती दी गई है।
विशेष गहन पुनरीक्षण का पहला चरण शनिवार को समाप्त हो गया। अब, 1 अगस्त को नई मसौदा मतदाता सूची प्रकाशित की जाएगी। इसी दिन से एक महीने तक चलने वाली दावे और सत्यापन की प्रक्रिया भी शुरू होगी, जहां लोग सूची में शामिल होने या गलतियों को सुधारने के लिए आवेदन कर सकेंगे। इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए अंतिम मतदाता सूची 30 सितंबर को जारी की जाएगी।
भारत निर्वाचन आयोग ने शनिवार को अंतिम आंकडे जारी नहीं किए हैं, लेकिन शुक्रवार को जारी अपने बुलेटिन में बताया था कि 65 लाख नाम मसौदा मतदाता सूची से हटाए जा सकते हैं। इन नामों को हटाने के पीछे मुख्य कारणों में लगभग 22 लाख मृत मतदाताओं के नाम हटाना व करीब 7 लाख मतदाताओं के नाम कई जगहों पर पंजीकृत होना भी है। इसके अलावा 35 लाख मतदाता ऐसे हैं जो या तो स्थायी रूप से कहीं और चले गए हैं या घर-घर सत्यापन के दौरान उनका पता नहीं चल पाया।
साथ ही 1.20 लाख अतिरिक्त गणना प्रपत्र अभी भी लंबित हैं, जिनकी समय सीमा बीत चुकी है। जनवरी में प्रकाशित ईसीआई की मतदाता सूची के अनुसार, बिहार में कुल मतदाताओं की संख्या 7.89 करोड थी। यदि इन सभी 65 लाख नामों को अंतिम सूची से हटा दिया जाता है, तो यह हाल के समय में किसी भी राज्य की मतदाता सूची से मतदाताओं को बाहर करने का सबसे बडा मामला होगा। चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में अपने इस कदम का बचाव करते हुए कहा है कि यह चुनावों की निष्पक्षता और पवित्रता बनाए रखने के लिए आवश्यक है।
