हिमाचल प्रदेश में फैंसी कलीरों ने लुप्त कर दी कौड़ियों के कलीरों की परम्परा
1 min readकलीरे लाल डोरी में 3-3 कौड़ियों के सैट गूंथकर बनाए जाते हैं
जवाली (शिबू ठाकुर )हिमाचल प्रदेश में बदलते दौर के साथ-साथ शादियों की रस्मों में भी एक बदलाव देखने को मिल रहा है। जिसमें से एक हिमाचल व देश की महत्वपूर्ण रस्म कलीरों की जानकारी से आपको रूबरू करवाएंगे। लड़की की शादी में कलीरे एक महत्वपूर्ण रस्म के साथ एक संदेश एक शिक्षा भी देते हैं कलीरे लाल डोरी में 3-3 कौड़ियों के सैट गूंधकर बनाए जाते हैं जिनमें सबसे नीचे नारियल लगाया जाता है। कलीरे पहनाकर सगे सम्बन्धी, बहनें व सखियां लड़की को क्या शिक्षा देना चाहती है आइए जाने। सबसे पहले हाथ में डोरी बांधने का अर्थ है कि आज से वह (लड़की) अल्लड़ नही रही, वह एक परिवार के साथ बंधन में बांधी जा रही है। 3-3 कौड़ियों के सैट का अर्थ है कि तीन परिवारों (उसका मायका, मामा परिवार व ससुराल) को मर्यादा व मान-सम्मान उसके हाथ में है। उसका हर छोटा बड़ा कदम दिलाएगा तीन परिवारों को मान या अपमान। नारियल बांधने का आशय है कि वह रंग रूप में बेशक है। नारियल की तरह श्याम रंग हो लेकिन मन से नारियल के अंदर की तरह उजली/ साफ मन रहे। वह नारियल की तरह बाहर से कठोर सही लेकिन मन से कोमल व मृदुभाषी रहे। हाथों में ज्यादा नारियल बांधने से बढ़े भार से कंधे झुकना गृहस्थी का भार कंधों पर पड़ने का संकेत देता है। कलीरे ऊठाकर आगे चलना उसे गृहस्थी की जिम्मेदारियां उठाकर चलने को प्रदिर्शत करता है। इन कलीरों को ससुराल में ननदों द्वारा खोले जाने की परंपरा है मतलब उसकी गृहस्थी के भार को ननदें बांट लेती हैं। वह उसकी गृहस्थी बसाने में मदद करती है। परिवार में हर सदस्य की पसंद-नापसंद, रसोई व खेत खिलहान को जानकारी, परिवार, पड़ोस व संबंधियों का परिचय नववधु को ननदों से ही मिलता है। ननदों के रूप में उसे नई सखियां मिल जाती है। बदलते वक्त के साथ फैंसी कलीरे मिलना,
पश्चिमी संस्कृति को ओर युवितयों का झुकाव, फैंसी कलीरे मिलने से कलीरों का स्वरूप बदलता जा रहा है
लेकिन वास्तविक कलीरा कौड़ियां वाला ही गिना व माना जाता है।