March 14, 2025

भाजपा को कांग्रेस ने फिर दे दिया एक बड़ा चुनावी मुद्दा

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कांग्रेस पार्टी चुनावों के दौरान भारतीय जनता पार्टी को कई ऐसे मुद्दे दे देती है जिनको लेकर भाजपा कांग्रेस पर हमलावर हो जाती है व चुनावों में उनका पूरा-पूरा लाभ उठाती है। पिछले दिनों इंडियन ओवरसीज कांग्रेस के अध्यक्ष सैम पित्रोदा ने विरासत टैक्स का मुद्दा छेड़ कर भारतीय जनता पार्टी को एक बड़ा चुनावी मुद्दा दे दिया है। प्रधानमंत्री के साथ-साथ भारतीय जनता पार्टी के प्रमुख स्टार चुनाव प्रचारक इस मुद्दे पर लगातार हमलावर हो रहे हैं। सैम पित्रोदा के विरासत टैक्स को लेकर दिए गए बयान ने दूसरे चरण के वोटिंग के दो दिन पहले कांग्रेस के लिए हिट विकेट होने जैसी स्थिति पैदा कर दी है। भारतीय जनता पार्टी संपत्ति के बंटवारे वाली राहुल की बात पर पहले से ही हमलावर थी, अब पित्रोदा के बयान पर उसे बड़ा चुनावी मुद्दा मिल गया है। हालांकि कांग्रेस नेता अब बचाव की मुद्रा में आ गए हैं। पहले चरण के चुनाव उपरांत ऐसा लग रहा था कि बीजेपी बैक फुट पर आ गई है। लेकिन पित्रोदा के बयान से बीजेपी को प्राण वायु मिल गई है। सैम पित्रोदा राजीव गांधी के खास सलाहकार रह चुके हैं। अपने प्रधानमंत्री काल में कुछ समय के लिए राजीव गांधी को ऐसे लगने लगा था कि उनकी सारी समस्याओं का हल सैम पित्रोदा कर देंगे। हालांकि राजीव गांधी की समस्याएं कम नहीं हुई थी बल्कि उनकी लोकप्रियता धीरे-धीरे कम होती गई व वे दोबारा अपनी सरकार भी नहीं बना पाए। इसी तरह वर्तमान में राहुल गांधी भी सैम पित्रोदा के मोहपाश में इस तरह से फंसे हुए हैं कि पूरी कांग्रेस पार्टी उससे प्रभावित होती रहती है। 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले भी पित्रोदा उनके बयानों के कारण कांग्रेस के लिए नुकसानदेह साबित हुए थे। सैम पित्रोदा ने 2019 के चुनावों से पहले भी मिडिल क्लास पर टैक्स थोपने की बात कह कर कांग्रेस का काम खराब किया था। अपने हालिया बयान में पित्रोदा ने कहा था कि अमेरिका में विरासत टैक्स लगता है जो काफी दिलचस्प कानून है। भारत में ऐसा कोई कानून नहीं है। उन्होंने इस पर चर्चा करने की जरूरत होने की बात कही। इस बयान के बाद कांग्रेस को पित्रोदा के बचाव में उतरना पड़ा है। जय राम रमेश ने कहा है कि लोकतंत्र में हर शख्स को उनके निजी विचारों पर चर्चा करने और अपनी राय रखने की स्वतंत्रता है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि पित्रोदा के विचार हमेशा कांग्रेस की राय से मेल खाते हों। जय राम रमेश ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी के दुर्भावना पूर्ण चुनावी कैंपेन से ध्यान भटकने के लिए जानबूझकर पित्रोदा के बयान को गलत संदर्भ में पेश किया जा रहा है। सवाल यही है कि पित्रोदा हर बार चुनाव के समय गलतियां करते हैं और फिर कांग्रेस सफाई देती रहती है। इससे पहले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी ने भी बीते दिनों एक बयान में कहा था कि अगर चुनाव बाद उनकी सरकार सत्ता में आई तो एक सर्वे करवाया जाएगा जिसमें पता लगाया जाएगा कि किसके पास कितनी संपत्ति है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार राहुल गांधी के इस विचार को मुद्दा बनाए हुए हैं। कांग्रेस इस मुद्दे को लेकर भी बचाव की मुद्रा में नजर आ रही है। प्रियंका गांधी ने भी पिछले दिनों इस मुद्दे पर कांग्रेस की ओर से सफाई दी और संपत्ति के बंटवारे की बात को बेबुनियाद बताया। सैम पित्रोदा ने एक अन्य वक्तव्य में अमेरिका में लगने वाले विरासत टैक्स का जिक्र करते हुए कहा कि अमेरिका में विरासत टैक्स लगता है। अगर किसी शख्स के पास 10 करोड डॉलर की संपत्ति है तो उसके मरने के बाद 45 फ़ीसदी संपत्ति उसके बच्चों को ट्रांसफर हो जाती है जबकि 55 फ़ीसदी संपत्ति पर सरकार का मालिकाना हक़ हो जाता है। उन्होंने इस कानून की तारीफ की व कहा कि व्यक्ति के मरने के उपरांत उसकी संपत्ति जनता के लिए छोड़ देनी चाहिए। चुनाव के समय इस तरह के वक्तव्य विपक्षी पार्टियां हाथों-हाथ लपक लेती है। पित्रोदा ने 2019 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस का बड़ा नुकसान किया था। अंतिम दो फेस के बचे हुए चुनावों के दौरान पित्रोदा ने सिख विरोधी दंगों के बारे में कहा था कि जो 1984 में होना था वह हो चुका। उनके इस बयान को नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने हाथों हाथ लिया था और चुनावी रैलियां में कांग्रेस कर जमकर हल्ला बोला था। सैम पित्रोदा ने राहुल गांधी की न्याय योजना के लिए देश के मध्यम वर्ग पर टैक्स लगाने की भी बात की थी। दरअसल न्याय योजना के तहत कांग्रेस ने वादा किया था कि देश के सबसे गरीब 20 प्रतिशत लोगों को सालाना 72000 रूपए दिए जाएंगे। जब पित्रोदा से इस बारे में पूछा गया कि इस योजना के लिए बजट कहां से आएगा तो उन्होंने मिडिल क्लास पर टैक्स थोपने की बात कह दी थी। बालाकोट स्ट्राइक पर भी संदेश करके उन्होंने कांग्रेस का बड़ा नुकसान किया था। चुनावों के दौरान बिना राजनीतिक गुणा भाग किए दिए जाने वाले वक्तव्य राजनीतिक पार्टियों के चुनावी गणित पर बड़ा असर डालते हैं। ऐसे बयानों से छुटकारा पाने के लिए पूरी पार्टी को आक्रामक मुद्रा छोड़कर बचाव की मुद्रा में आना पड़ जाता है।