कांग्रेस पर भारी पड़ते इंडी गठबंधन के सहयोगी दल

देश में चल रहे लोकतंत्र के महापर्व में मतदान का पहला चरण पूर्ण हो जाने के बाद भी विपक्षी इंडी गठबंधन में किसी प्रकार का तालमेल नजर नहीं आ रहा है। कहीं से भी यह नहीं लग रहा है कि बीजेपी व सहयोगी दलों के विरुद्ध एकजुट हुए विपक्षी दलों के इस गठबंधन में किसी प्रकार का सामंजस्य है या गठबंधन में शामिल राजनीतिक दल भाजपा गठबंधन पर एकजुट होकर प्रहार करने में जुट चुके हैं। इसके विपरीत इंडी गठबंधन में शामिल दल अनेक स्थानों पर एक दूसरे को नीचा दिखाने से भी परहेज नहीं कर रहे हैं। स्पष्ट है कि यह गठबंधन किन्हीं राजनीतिक सिद्धांतों या उद्देश्यों की पूर्ति के लिए नहीं बना बना है बल्कि मात्र मोदी हटाने के नारे के साथ यह दल एकजुट दिखने का प्रयास कर रहे हैं।
हाल ही में बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने न केवल यह घोषणा कर दी कि कांग्रेस और वामपंथी दल इंडी गठबंधन के घटक नहीं है बल्कि यह आरोप भी लगाया कि कांग्रेस एवं माकपा ने भाजपा से गुप्त समझौता कर रखा है। भले ही उनके इस बयान पर यकीन करना कठिन है लेकिन यह स्पष्ट है कि वह बंगाल की जनता को यही संदेश देना चाहती है कि अन्य भाजपा विरोधी दलों पर भरोसा करना उचित नहीं है। इंडी गठबंधन एक ऐसे समय अपनी एकजुटता का संदेश देने में नाकाम है जब अभी मतदान के 6 चरण शेष है। ममता ने इससे पहले भी इंडी गठबंधन को तब झटका दिया था जब उन्होंने बंगाल में अपने बलबूते सभी सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी थी।
यही व्यवहार केरल में वाम दलों ने भी किया जहां उन्होंने न केवल वायनाड में राहुल गांधी के खिलाफ उम्मीदवार उतार दिया बल्कि उन्हें यह सलाह भी दी कि यदि वह भाजपा को हराना चाहते हैं तो उत्तर भारत में कहीं से चुनाव लड़े। इंडी गठबंधन के घटकों के बीच जम्मू कश्मीर में भी कोई समझौता नहीं हो सका है। कांग्रेस का संकट यह भी है कि वह सहयोगी दलों के असहयोग भरे रवैये का ढंग से प्रतिरोध भी नहीं कर पा रही है। हैरानी की बात है कि कांग्रेस जिन असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी को भाजपा की बी टीम यानी सहयोगी बताया करती थी उसे हैदराबाद में समर्थन देने के लिए मजबूर होना पड़ा।
कांग्रेस को बंगाल, केरल, जम्मू कश्मीर के अतिरिक्त कुछ अन्य राज्यों में भी अपने सहयोगी दलों की बेरुखी का सामना करना पड़ रहा है। जहां वह दिल्ली में तो आम आदमी पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही है वहीं पंजाब में उसके खिलाफ है। क्योंकि आम आदमी पार्टी वहां कांग्रेस को कोई सीट देने के लिए तैयार नहीं थी। लोकसभा चुनावों की घोषणा होने से पहले जनता दल यूनाइटेड और राष्ट्रीय लोक दल के इंडी गठबंधन से अलग होने से भी कांग्रेस को बड़ा झटका लगा था। इसके अलावा अन्य कई मुद्दों पर कांग्रेस को सहयोगी दलों के कांग्रेस विरोधी रवैया पर चुप्पी साधनी पड़ रही है।
शुरू से ही यह दिखाई दे रहा था कि इंडी गठबंधन में शामिल राजनीतिक दलों के अपने निजी स्वार्थ है व वे अपने राजनीतिक स्वार्थ से किसी प्रकार का समझौता किए बिना मात्र कांग्रेस से त्याग करने की इच्छा जताए हुए थे। अगर यह मान भी लिया जाए की 2024 के चुनाव परिणाम विपक्षी गठबंधन के पक्ष में आ सकते हैं तो चुनाव परिणाम उपरांत यह दल कांग्रेस पर किस प्रकार भारी पड़ेंगे, उस स्थिति को उनके वर्तमान व्यवहार से समझा जा सकता है।