प्रधानमन्त्री मोदी के मुकाबले चुनौती पेश करने में असफल दिखता विपक्ष
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लोकसभा चुनावों का बिगुल बजने के साथ ही देश में राजनीतिक पार्टियों द्वारा प्रचार, उम्मीदवारों के चयन, नामांकन आदि की प्रक्रिया शुरू है। इसके साथ ही राजनीतिक दल अपने विरोधियों को लोकतंत्र विरोधी, भ्रष्ट व अराजक साबित करने में भी जुट चुके हैं। विपक्षी दल सत्ता पक्ष को लोकतंत्र के लिए खतरा बता रहे हैं व महंगाई, बेरोजगारी आदि समस्याओं के लिए जिम्मेदार ठहराते हुए उसे सत्ता से हटाने की देशवासियों से अपील कर रहे हैं। जबकि सत्ता पक्ष साबित करने में जुटा है कि विपक्ष के पास न कोई मुद्दा है न ही कोई सर्वमान्य चेहरा नेता।
चुनावों में राजनीतिक दलों द्वारा विरोधी राजनीतिक पार्टियों या उम्मीदवारों पर आरोप लगाना आम बात है। यह चुनाव प्रचार का मुख्य हिस्सा है। इन राजनीतिक आरोपों- प्रत्यारोपों से आम मतदाता प्रभावित भी होता है व अक्सर ऐसे दुष्प्रचार से चुनावों में बाजी पलटती ही नहीं बल्कि कई बार तो समूचे नतीजे एक तरफ भी हो जाते हैं। हां, यह अलग बात है कि चुनावों के बाद मतदाता अक्सर स्वयं को ठगा महसूस करता है क्योंकि सत्ता तो बदलती है लेकिन व्यवस्था वैसे ही चलती है जैसे पिछली सरकार के समय चलती थी।
गत दो लोकसभा चुनावों की तरह ही इन चुनावों में भी एक बात साफ नजर आती है कि एक तरफ सर्वमान्य नेता के रूप में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चेहरा है तो दूसरी तरफ विपक्ष के पास ऐसा कोई नेता नहीं है जिसे आगे रखकर चुनावी टक्कर दी जा सके। विपक्ष भाजपा या एनडीए पर चुनावी हमले तो कर रहा है लेकिन इन हमलों में वह प्रहार नहीं है जो एक सर्वमान्य चेहरा आगे रखकर किया जा सकता था। ऐसा लगता है जैसे विपक्षी दल भाजपा को उसके निर्धारित लक्ष्य से कम पर रोकने के उद्देश्य के साथ चुनाव लड़ रहे हैं। वर्तमान में तो यही नजर आ रहा है व हो सकता है कि आने वाले दिनों में विपक्ष की धार में और पैनापन नजर आ सके।
वर्तमान में प्रधानमंत्री मोदी की छवि और लोकप्रियता के चलते भाजपा बढ़त पर दिख रही है। लोकप्रियता के मामले में कोई अन्य नेता उनका मुकाबला करने की स्थिति में नजर नहीं आता है। इसी के चलते भाजपा प्रत्याशी यह मानकर चल रहे हैं कि मोदी की साख और छवि ही उनकी चुनावी नैया पार करने में सबसे बड़ी भूमिका निभाएंगी। यह स्थिति पिछले लोकसभा चुनाव में भी देखने को मिली थी। कई भाजपा प्रत्याशी इसलिए आसानी से जीत गए थे क्योंकि मतदाता मोदी को फिर से प्रधानमंत्री पद पर देखना चाहते थे। इसके चलते कई ऐसे भाजपा प्रत्याशी भी जीत गए थे जिनके कार्यों से उनके क्षेत्र की जनता खुश नहीं थी। भाजपा नेता इसलिए तीसरी बार सत्ता में आने को लेकर आश्वस्त है क्योंकि पिछले 10 वर्षों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार ने कई ऐसी उपलब्धियां हासिल की हैं जो अपने आप में मिसाल है। इसके चलते मोदी भारतीय राजनीति के ऐसे भरोसेमंद ब्रांड बन गए हैं जिनके सामने अन्य कोई नहीं ठहर पा रहा है।
आमतौर पर सरकारों को अपने एक कार्यकाल के बाद ही सत्ता विरोधी रुझान का सामना करना पड़ता है लेकिन गत 10 वर्षों के शासन के बाद भी मोदी सरकार के प्रति कोई विशेष सत्ता विरोधी लहर नहीं दिख रही है। जिन लोगों को यह लगता है कि अभी कुछ समस्याएं शेष है वह भी यह मानते हैं कि उनका समाधान करने की सामर्थ्य मोदी सरकार में ही है। इंडी गठबंधन के रूप में विपक्षी दलों ने एक हद तक अपने को एकजुट तो कर लिया है लेकिन उनके मतभेद किसी से छिपे नहीं हैं। इन मतभेदों के कारण कांग्रेस और सहयोगी दलों में अपेक्षित तालमेल नहीं हो पाया है। वामपंथी दलों और तृणमूल कांग्रेस कहने को तो इंडी गठबंधन के घटक है लेकिन जहां केरल में वाम दल कांग्रेस का साथ देने को तैयार नहीं वहीं बंगाल में तृणमूल कांग्रेस अपने दम पर चुनाव लड़ रही है। यही हालात दिल्ली और पंजाब में भी है। जहां दिल्ली में कांग्रेस आम आदमी पार्टी से गठबंधन में है वहीं पंजाब में एक दूसरे के कट्टर विरोधी हैं।
साफ है कि विपक्षी दलों का गठबंधन मात्र चुनावी गठबंधन है जिसका कोई भविष्य नहीं है। विपक्षी दल केंद्र की सत्ता पर कब्जा तो चाहते हैं लेकिन उनके पास वहां तक पहुंचने का कोई रोड मैप नहीं है। सत्ता पक्ष पर भ्रष्टाचार के ऐसे आरोप लगाने से सत्ता हासिल नहीं हो सकती जिसका कोई आधार नहीं हो। वर्तमान में विपक्ष को एक ऐसे सर्वमान्य चेहरे को आगे करने की आवश्यकता है जो जनता के बीच मोदी के मुकाबले में चुनौती पेश कर सके।