February 23, 2025

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी से पंजाब सरकार को बड़ी राहत

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पंजाब की भगवंत सिंह मान सरकार और राज्यपाल के बीच लंबे समय से चले आ रहे टकराव में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी से जहां सरकार को राहत मिली है वहीं राज्यपाल को उनकी शक्तियों को लेकर नसीहत दी गई है। पिछले काफी अर्से से सरकार और राज्यपाल एक दूसरे पर आरोप- प्रत्यारोप लगाते आ रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट में सरकार द्वारा दायर याचिका पर शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया है कि संसदीय लोकतंत्र में असली ताकत चुने हुए जन प्रतिनिधियों के पास होती है जबकि राष्ट्रपति की ओर से नियुक्त राज्यपाल राज्य का नाम का मुखिया होता है।

पंजाब सरकार ने 28 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट में याचिका थी जिसमें राज्यपाल पर विधानसभा में पास हुए सात बिलों पर रोक लगाने का आरोप लगाया था। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने पंजाब व तमिलनाडु के राज्यपालों को एक प्रकार से फटकार लगाते हुए कहा है कि यह गंभीर मामला है व राज्यपाल आग से खेल रहे हैं। पंजाब के राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित पर विधानसभा में पास हो चुके 7 बिलों को रोके रखने का आरोप है जबकि तमिलनाडु के राज्यपाल आर एन रवि पर विधानसभा में पास हो चुके 12 बिलों को मंजूरी न देने का आरोप है।

यह मामला पंजाब विधानसभा में 19 और 20 जून को बुलाए गए विशेष सत्र में पास किए गए चार बिलों को राज्यपाल द्वारा पास न करने को लेकर था। सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपालों की शक्तियों और सीमाओं को रेखांकित करते हुए अपने महत्वपूर्ण आदेश में कहा है कि राज्यपाल विधान सभा सत्र की वैधता पर संदेह कर विधेयकों को लटकाए नहीं रख सकते। पंजाब विधानसभा का 19 व 20 जून का सत्र संवैधानिक था और पंजाब के राज्यपाल उन्हें विचार के लिए भेजे गए विधेयकों पर संविधान के अनुसार कार्यवाही करें। साथ ही कोर्ट ने विधेयकों की मंजूरी को लेकर पंजाब सरकार और राज्यपाल के बीच जारी गतिरोध को भी गंभीर चिंता का विषय बताया है।

सुप्रीम कोर्ट ने यहां तक कह दिया कि राज्यपाल आग से खेल रहे हैं। राज्यपाल और पंजाब सरकार दोनों से शीर्ष कोर्ट ने कहा कि देश स्थापित परंपराओं पर चलता है व उनका पालन करने की जरूरत है। सत्र की वैधानिकता पर सवाल उठाने पर कोर्ट ने राज्यपाल की खिंचाई करते हुए उनकी विधानसभा सत्र को असंवैधानिक करार देने की शक्ति पर भी सवाल उठाया। प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने राज्यपाल सचिवालय की ओर से पेश वकील से कहा कि आप यह कैसे कह सकते हैं कि जो विधेयक आपको मंजूरी के लिए भेजे गए हैं उन्हें आप सहमति नहीं देंगे क्योंकि सत्र अवैध था? यह विधेयक चुने हुए सदस्यों ने पास किए हैं। कोर्ट ने कहा कि हम संसदीय लोकतंत्र में है और यह बहुत गंभीर मुद्दा है।

सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी के बाद पंजाब विधानसभा में पारित इन महत्वपूर्ण बिलों पर फैसलों के लिए रास्ता साफ हो गया है, जिनमें पंजाब पुलिस संशोधन बिल 2023 में डीजीपी की नियुक्ति संघ लोक सेवा आयोग को पैनल भेजने की बजाय राज्य स्तर पर करने की बात है। इसमें हाई कोर्ट के जज की अगुवाई में एक कमेटी गठित करने का प्रावधान है जिसके तहत राज्य में डीजीपी के पद पर पंजाब कैडर के ही आईपीएस की नियुक्ति का प्रावधान है। इसके साथ ही एक अन्य विधेयक में विश्वविद्यालय में कुलपति राज्यपाल की बजाए मुख्यमंत्री होंगे। एक अन्य बिल में सिख गुरुद्वारा संशोधन बिल 2023 में श्री हरमंदिर साहिब से गुरबाणी प्रसारण करने के निशुल्क अधिकार दिए जाने का प्रावधान किया गया है। संशोधित बिल में गुरबाणी का सीधा प्रसारण करने के लिए सिख गुरुद्वारा एक्ट 1925 में धारा 125 के बाद धारा 125 ए को जोड़ा गया है।

राज्यपाल को सुप्रीम कोर्ट की फटकार पर आम आदमी पार्टी ने खुशी जाहिर करते हुए कहा है कि सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी देश के संविधान और लोकतंत्र को मजबूत बनाने वाली है। पार्टी के मुख्य प्रवक्ता मालविंदर सिंह कंग ने कहा है कि पंजाब के 3 करोड लोगों ने राज्य के कामकाज से संबंधित फैसले लेने के लिए मुख्यमंत्री भगवंत मान के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी सरकार को चुना है राज्यपाल को नहीं। उन्होंने कहा कि देश का संविधान जनता द्वारा चुने हुए लोगों को फैसला लेने का अधिकार देता है। राज्यपाल द्वारा सत्र को गैरकानूनी बताना और लंबे समय तक विधानसभा से पास विधेयकों को रोके रखने के कारण राज्य को काफी नुकसान हुआ है। यह तरीका लोकतंत्र के लिए सही नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद यह माना जा सकता है कि पंजाब में राज्यपाल और सरकार के बीच टकराव समाप्त होगा तथा सरकार व राज्यपाल अपनी अपनी सीमाओं और अधिकारों के अनुरूप कार्य करेंगे।