मां ज्वाला जी- ज्योति रूप में विराजमान है मां भगवती
1 min read
ज्वालामुखी या ज्वालाजी में स्थित मां ज्वाला जी का मंदिर
भारत के प्रतिष्ठित शक्ति मंदिरों में ज्वाला माता का मंदिर देवी भक्तों के लिए विशेष श्रद्धा और विश्वास लिए हुए हैं। हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिला के ज्वालामुखी या ज्वालाजी में स्थित मां ज्वाला जी का यह मंदिर शिवालिक पर्वत श्रृंखला की कालीधार में स्थापित है। ऐसा भी माना जाता है कि यह पांडवों द्वारा बनाया गया प्रथम मंदिर है। ज्वाला जी को ‘प्रकाश की देवी’ भी कहा जाता है क्योंकि यहां देवी की किसी प्रकार के मूर्ति रूप या प्रतिमा की पूजा न करते हुए प्राकृतिक रूप से भूमि से प्रकट हुई ज्योति या ज्वाला की पूजा की जाती है।
माना जाता है कि जिस स्थान पर माता का मंदिर है वहां माता सती की जिह्वा गिरी थी। यहां भूमि से प्रकट हुई पवित्र ज्वालायें निरंतर जलती रहती है। आस्था के केंद्र के रूप में ज्वाला देवी मंदिर अद्वितीय है क्योंकि हिंदू धर्म में अधिकतर देवी देवताओं की पूजा उनके मूर्ति रूप में की जाती है। लेकिन माता ज्वाला जी मंदिर में प्राकृतिक रूप से पृथ्वी के गर्व से निकली 9 ज्वालाओं की पूजा होती है। इन्हीं ज्वालाओं के ऊपर माता ज्वाला जी का मंदिर बना है।
प्राचीन काल से ही मन्दिर में प्रकट हुई ज्वालाओं की देवी का प्रतीक या रूप मानकर पूजा की जा रही है। ज्वालामुखी या ज्वालाजी मंदिर भारत ही नहीं बल्कि समूचे विश्व में प्रसिद्ध है। ज्वालाजी मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है। ज्वाला जी मंदिर को मां जोतां वाली मंदिर भी कहा जाता है।
माता ज्वाला जी की उत्पत्ति से संबंधित कथा
पुराणों में किए गए वर्णन के अनुसार हिमालय के राजा दक्ष प्रजापति अपनी पुत्री सती का विवाह भगवान शंकर से नहीं करना चाहते थे क्योंकि वे उन्हें पसंद नहीं थे। लेकिन देवताओं के आग्रह पर उन्हें भगवान शिव के साथ अपनी पुत्री सती का विवाह करना पड़ा। एक बार दक्ष प्रजापति ने अपने यहां एक यज्ञ का आयोजन किया जिसमें उन्होंने भगवान शंकर व सती को आमंत्रित नहीं किया। यज्ञ में आमंत्रित न किए जाने के बावजूद भी माता सती अपने पिता के घर यज्ञ में शामिल होने पहुंच गईं लेकिन वहां भगवान शंकर के प्रति अपने पिता के कटु वचनों को सहन न कर सकीं व क्रोध व अपमान के फलस्वरूप उन्होंने यज्ञ कुंड की अग्नि में कूदकर अपनी जीवन लीला समाप्त कर दी।
जब इस बात का पता भगवान शंकर को लगा तो वे वहां पहुंच गए और यज्ञ कुंड से माता सती के शव को उठाकर वे शोक व क्रोध में आकर तांडव करने लगे। भगवान शंकर के तांडव करने से समूचे ब्रह्मांड में हाहाकार मच गया। ऐसी स्थिति में ब्रह्मांड को बचाने व भगवान शिव को माता सती के मोह से हटाने के लिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शव के 51 हिस्से कर दिए जो अलग-अलग स्थानों पर गिरे। माना जाता है की ज्वाला जी नामक स्थान पर माता सती की जिह्वा गिरी थी जो ज्योति के रूप में भक्तों को दर्शन व आशीर्वाद देती है।
मंदिर का निर्माण
माना जाता है कि इन ज्वालाओं की खोज व मंदिर का प्रथम बार निर्माण पांडवों द्वारा किया गया था। यह भी माना जाता है कि मंदिर का निर्माण राजा भूमि चंद ने करवाया था बाद में महाराजा रणजीत सिंह और हिमाचल के राजा संसार चंद ने इस मंदिर का पूर्ण निर्माण करवाया है। इसी कारण इस मंदिर में हिंदुओं और सिखों की समान आस्था है।
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ज्वाला जी मंदिर से संबंधित अन्य प्रचलित कथाएं
कहां जाता है कि बादशाह अकबर को जब इस मंदिर के बारे में पता चला तो उसने अपनी सेनाएं भेज कर यहां जलती ज्वालाओं को नहर के पानी द्वारा बुझाने की पूरी कोशिश की लेकिन वह ज्वालाओं को बुझा नहीं सका। उसके बाद उसने सवा मन का सोने का छत्र मंदिर में चढ़ाया जिसे देवी ने स्वीकार नहीं किया व वह छत्र किसी अन्य धातु में परिवर्तित हो गया। इसके उपरांत अंग्रेजी हुकूमत के दौरान अंग्रेज सरकार ने भी भूगर्भ से निकलती इन ज्वालाओं को ऊर्जा में परिवर्तित करने के लिए अनेक प्रयोग किए लेकिन वे हमेशा विफल रहे। पिछले कई दशकों से भूगर्भ विज्ञानी भी यहां ऊर्जा से संबंधित खोज करने में जुटे हैं लेकिन अभी तक उन्हें भी कुछ हासिल नहीं हुआ है।
माता ज्वाला जी मंदिर कैसे पहुंचें
हवाई मार्ग से माता ज्वाला जी मंदिर पहुंचने के लिए यहां से 43 किलोमीटर की दूरी पर गग्गल हवाई अड्डा है जहां से सड़क मार्ग द्वारा ज्वाला जी पहुंचा जा सकता है। रेल मार्ग से यहां आने के लिए जिला ऊना के अंब रेलवे स्टेशन तक पहुंचा जा सकता है जहां से आगे सड़क मार्ग से मंदिर तक पहुंच सकते हैं। इसके अलावा पठानकोट से चलने वाली स्पेशल ट्रेन से मारंडा होते हुए पालमपुर तक आ सकते हैं। सड़क मार्ग से यहां निजी वाहन या बस सेवा द्वारा पहुंचा जा सकता है। ज्वाला जी के लिए दिल्ली चंडीगढ़, लुधियाना, जालंधर, शिमला आदि उत्तर भारत के लगभग सभी मुख्य शहरों से बस सेवा उपलब्ध है।
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समीपवर्ती अन्य धार्मिक एवं पर्यटन स्थल
बज्रेश्वरी देवी: ज्वालाजी मंदिर से कांगड़ा स्थित प्रसिद्ध बज्रेश्वरी देवी मंदिर लगभग 35 किलोमीटर की दूरी पर है। यहां स्थित कांगड़ा का किला भी पर्यटकों के लिए दर्शन योग्य स्थान है।
चामुंडा देवी: ज्वाला जी मंदिर से चामुंडा देवी मंदिर लगभग 53 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है
चिंतपूर्णी: ज्वाला जी से चिंतपूर्णी मंदिर की दूरी लगभग 30 किलोमीटर है।
धर्मशाला: ज्वाला जी से हिमाचल का प्रसिद्ध पर्यटन स्थल धर्मशाला लगभग 52 किलोमीटर की दूरी पर है।
दियोटसिद्ध मंदिर: ज्वालाजी से प्रसिद्ध बाबा बालक नाथ दियोटसिद्ध मंदिर लगभग 74 किलोमीटर की दूरी पर है।