शुरू हुई भगवान जगन्नाथ रथयात्रा, जानिए रथयात्रा से जुड़ी कुछ खास बातें
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पुरी – उड़ीसा के पुरी में भगवान जगन्नाथ की भव्य रथयात्रा शुरू हो गई है। रथयात्रा में भगवान जगन्नाथ का रथ, देवी सुभद्रा का रथ और भगवान बलभद्र का रथ निकाला जा रहा है। इस मौके पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु प्रभु के दर्शन करने और उनका रथ खींचने वहां मौजूद हैं। राष्ट्रपति द्रौपती मुर्मु और सीएम मोहन चरण माझी, पूर्व सीएम नवीन पटनायक, केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान भी रथयात्रा में शामिल होने पहुंचे हैं।
जगन्नाथपुरी भारत के चार धामों में से एक है। श्रीजगन्नाथ मंदिर प्रसिद्ध हिंदू मंदिर जो भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित है. इस सुप्रसिद्ध मंदिर को धरती का वैकुंठ भी कहा जाता है।
जगन्नाथपुरी रथ यात्रा की विशेषताएं
पुरी की रथयात्रा हर साल आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को प्रारंभ होती है। इस रथ यात्रा के लिए भगवान श्रीकृष्ण, देवी सुभद्रा और भगवान बलभद्र के लिए नीम की लकड़ियों से रथ तैयार किए जाते हैं। सबसे आगे बड़े भाई बलराम का रथ, बीच में बहन सुभद्रा और पीछे जगन्नाथ श्रीकृष्ण का रथ होता है। इन तीनों रथों के अलग-अलग नाम व रंग होते हैं। बलराम जी के रथ को तालध्वज कहा जाता है और इसका रंग लाल और हरा होता है। देवी सुभद्रा के रथ को दर्पदलन या पद्मरथ कहा जाता है और यह रथ काले या नीले रंग का होता है। भगवान जगन्नाथ का रथ नंदिघोष या गरुड़ध्वज कहलाता है और यह रथ पीले या लाल रंग का होता है। नंदिघोष की ऊंजाई 45 फीट ऊंची होती है, तालध्वज 45 फीट ऊंचा और देवी सुभद्रा का दर्पदलन पथ तकरीबन 44.7 फीट ऊंचा होता है।
जगन्नाथ रथ यात्रा जगन्नाथ मंदिर से शुरू होकर 3 किलोमीटर दूर गुंडीचा मंदिर पहुंचती है। मान्यतानुसार इस स्थान को भगवान जगन्नाथ की मौसी का घर कहा जाता है। एक मान्यता यह भी है कि विश्वकर्मा द्वारा इसी स्थान पर तीनों प्रतिमाओं का निर्माण किया गया था और यह भगवान जगन्नाथ की जन्मस्थली है। यहीं तीनों देवी-देवता 7 दिनों के लिए विश्राम करते हैं। आषाढ़ माह के दसवें दिन विधि-विधान से रथ मुख्य मंदिर की ओर प्रस्थान करते हैं। वापसी की यात्रा को बहुड़ा कहा जाता है।